Manish Sharma

क्रिस्टल दोष क्या है? दोष कितने प्रकार के होते है?

क्रिस्टल दोष ( crystal defect ) :- 

जब किसी क्रिस्टल मे अवयवी कणो की नियमित व्यवस्था से अवयवी कण का विचलन हो जाता है तो उसे क्रिस्टल दोष कहते है। 

  • इसे क्रिस्टल अपूर्णताएँ भी कहा जाता है 
  • ये दोष ताप पर निर्भर करते है इसलिए इसे उष्मागतिकीय दोष भी कहा जाता है 
  • क्रिस्टलो मे दोष के कारण क्रिस्टल के गुणो तथा यांत्रिक शक्ति मे परिवर्त्तन आ जाते है 
  • कोई भी क्रिस्टल पूर्णतः विशुद्व नही होता है सिर्फ वरम शून्य ताप पर अधिकांश क्रिस्टल दोष रहित हो जाते है 
दोष समान्यतः दो प्रकार के होते है :-
  1. रैखिक दोष ( Liner defect )
  2. बिंदु दोष ( Point defect )
रैखिक दोष ( Liner defect ) :-

जालक बिंदु के सम्पूर्ण कतार मे अवयवी कणो की आदर्श व्यवस्था से विचलन को रैखिक दोष कहते है 
                                                         या 
जब किसी क्रिस्टल के कतार मे अनियमिताए या विचलन हो जाती है तो इस प्रकार उत्पन दोष रैखिक दोष कहा जाता है। 

बिंदु दोष ( Point defect ) :-

जब क्रिस्टल के आदर्श व्यवस्था मे आयन या परमाणु के गायब होने से विचलन या अनियमिताए उत्पन होती है तो इस प्रकार उत्पन दोष को बिंदु दोष कहते है।  

बिंदु दोष तीन प्रकार के होते है :-
  1. स्टॉकियो मेट्रिक दोष 
  2. ननस्टॉकियो मेट्रिक दोष 
  3. अशुद्वता दोष 
स्टॉकियो मेट्रिक दोष :-

वैसा बिंदु दोष जिसमे ठोस की स्टॉकियो मैट्रिक बाधित नही होता है उसे स्टॉकियो मेट्रिक दोष कहते है। 

स्टॉकियो मेट्रिक दोष मुख्यतः दो प्रकार के होते है :-
  1. साँटकी दोष ( Scottky defect )
  2. फ्रेंकेल दोष ( Frenkal defect )
साँटकी दोष ( Scottky defect ) :- 

जब किसी क्रिस्टल से एक धनायन तथा एक ऋणायन अपने निर्धारित स्थान से हटकर क्रिस्टल से गायब हो जाते है तो इन दोनो आयनो के निर्धारित स्थान पर रिक्तियाँ उत्पन हो जाती है इस प्रकार से क्रिस्टल मे उत्पन दोष को साँटकी दोष कहते है। 
  • यह दोष प्रबल आयनिक ठोस या यौगिक मे होता है 
  • यह दोष उस यौगिक मे होता है जिसमे धनायन का आकार ऋणायन के आकार का बराबर होता है 
  • इस दोष मे क्रिस्टल का घनत्व कम हो जाता है 
  • यह दोष वैसे आयनिको यौगिक या ठोसो मे होता है जिसकी उपसहसंयोजन संख्या उच्च होता है


 
फ्रेंकेल दोष ( Frenkal defect ) :-

जब किसी क्रिस्टल से एक धनायन अपने निर्धारित स्थान से निकलकर जालक के किसी अन्तराली स्थान मे फस जाते है तो उस आयन का अपना स्थान रिक्तियाँ उत्पन होता है इस प्रकार उत्पन दोष को फ्रेंकेल दोष कहते है। 
  • इसे विस्थापन दोष भी कहा जाता है 
  • इस दोष के कारण क्रिस्टल के घनत्व अप्रभावित रहता है 
  • यह दोष वैसे क्रिस्टल मे होता है जिसमे धनायन का आकार ऋणायन के आकार से छोटा होता है 
  • इस दोष से युक्त क्रिस्टल विधुत के चालक बन जाते है


 
शॉटकी दोष और फ्रेंकल दोष में अंतर :-

शॉटकी दोष :-
  • यह दोष प्रबल आयनिक ठोस या यौगिक में होता है 
  • इस दोष में क्रिस्टल का घनत्व कम हो जाता है 
  • यह दोष उस यौगिक में होता है जिसमे धनायन का आकार ऋणायन के आकार के बराबर होता है 
  • यह दोष वैसे आयनिक यौगिक या ठोस में होता है जिसकी उपसहसंयोजन संख्या उच्च होती है 
फ्रेंकल दोष :-
  • यह दोष वैसे क्रिस्टल में होता है जिसमे धनायन का आकार ऋणायन के आकार से छोटा होता है 
  • इस दोष के कारण क्रिस्टल के घनत्व अप्रभावित रहता है 
  • इस दोष से युक्त क्रिस्टल विधुत के चालक बन जाते है 
  • इस दोष को विस्थापन दोष कहते है 
ननस्टॉकियो मेट्रिक दोष :-

वैसा दोष जो यौगिक के स्टॉकियो मेट्रिक को असंतुलन कर देता है उसे ननस्टॉकियो मेट्रिक कहते है। 
  • इस दोष मे ननस्टॉकियो मेट्रिक यौगिक मे धनायन की अधिकता होती है या फिर ऋणायन की 
  • इस दोष मे यौगिक की उदासीनता कायम रखने के लिए अतिरिक्त धन आवेश या इलेक्ट्रॉन क्रिस्टल मे व्यवस्थित हो जाते है। 
ननस्टॉकियो मेट्रिक यौगिक :-

वे अकार्बनिक ठोस पदार्थ जिनके अणु मे रासायनिक सूत्र के विपरीत किसी एक तत्व की अधिकता या न्यूनता होती है उसे ननस्टॉकियो मेट्रिक यौगिक कहते है। 
  • ऐसे यौगिक मे धनायनों एंव ऋणायन की संख्या उनके मान्य रासायनिक सूत्र के अनुरुप नही होता है। 
ननस्टॉकियो मेट्रिक दोष दो प्रकार के होते है :-
  1. धातु अधिक्य दोष ( Metal exess defects )
  2. धातु न्यूनता दोष ( Metal deficience defect )
धातु अधिक्य दोष :-

जब किसी क्रिस्टल से एक ऋणायन अपने जालक बिंदु से गायब हो जाता है जिसके कारण उसके स्थान पर छिद्र बन जाता है परन्तु इस छिद्र के स्थान पर एक अतिरिक्त इलेक्ट्रॉन आकर क्रिस्टल की विधुत उदासीनता कायम कर देता है तो इस तरह क्रिस्टल मे उत्पन दोष को धातु अधिक्य दोष कहते है
                                                                    या 
क्रिस्टल जालक के अंतराली स्थान में एक अतरिक्त धनायन आ जाता है क्रिस्टल की विधुत उदासीनता कायम रखने के लिए एक अतरिक्त इलेक्ट्रॉन भी अंतराली स्थान में प्रवेश कर जाते है इस तरह क्रिस्टल में उत्पनन दोष को भी धातु आधिक्य दोष कहते है। 
  • यह दोष साँटकी दोष की तरह होता है किन्तु साँटकी मे दो छिद्र बनते है जबकि इसमे सिर्फ एक छिद्र बनता है। क्रिस्टल दोष क्या है दोष कितने प्रकार के होते है 
धातु न्यूनता दोष :-

यह दोष भी दो प्रकार से उत्पन होता है इन दोषो मे धातु की परिवर्तन शील संयोजकता की आवश्यकता होती है इसमे क्रिस्टल के जालक बिंदु से एक धनायन गायब हो जाता है लेकिन आवेशो के संतुलन को बनाएं रखने के लिए धातु परमाणु पर दो धनावेश उत्पन हो जाते है इस तरह धातु न्यूनता दोष उत्पन होता है। 
  • इस दोष के लिए धातु परमाणु मे परिवर्ति संयोजकता ग्रहण करने की क्षमता होनी चाहिए। 
  • जब क्रिस्टल जालक के अंतराली स्थान में एक अतिरिक्त ऋणायन प्रवेश कर जाता है तो धातु न्यूनता दोष उत्पनन होता है लेकिन आवेशो के संतुलन के लिए निकट वाले धातु आयन पर एक अतिरिक्त धनावेश उत्पनन हो जाता है 
  • ऋणायन का आकार धनायन से बड़ा होता है अतः उनका क्रिस्टल जालक के अंतराली स्थान में प्रवेश करना आसान नही होता है यही कारण है कि धातु अल्पता दोष में यौगिक की संभवनाओ नही के बराबर होती है इस दोष से युक्त क्रिस्टल अर्द्धचालक होते है। 
रिक्तियाँ :-

क्रिस्टल के परमाणुओ को पैकिंग करने में क्रिस्टल के अंदर परमाणुओ के बीच कुछ खाली स्थान रह जाते है जिसे रिक्तियाँ कहते है। 
  • इसे Holes या छिद्र भी कहा जाता है। 
परमाणुओ को दो स्थानो मे सजाने पर दो प्रकार की रिक्तियाँ उत्पनन होती है :-
  1. अष्ट फलकीय रिक्तियाँ 
  2. चतुष्फलकीय रिक्तियाँ 
अष्ट फलकीय रिक्तियाँ :-

छहः परमाणुओ के परस्पर सम्पर्क मे रहने पर जिस रिक्तियाँ का निर्माण होता है उसे अष्ट फलकीय रिक्तियां कहते है। 

चतुष्फलकीय रिक्तियाँ :-

चार परमाणुओ के परस्पर सम्पर्क मे रहने से जिस रिक्तियाँ का निर्माण होता है उसे चतुष्फलकीय रिक्तियाँ कहते है। 
  • इसे अन्तराली भी कहा जाता है 
  • संक्रमण धातुओ के हाइड्रोजन एंव नाइट्रोजन मे अधातुएँ अन्तराली स्थानो मे रहते है। 
Note:-

ठोस पदार्थ के जालक मे परमाणुओ को सजाने पर अष्टफलकीय रिक्तियाँ की संख्या उस जालक के सिमित पैकिंग मे शामिल कणो की संख्या के बराबर होते है तथा चतुष्फलकीय रिक्तियाँ की संख्या अष्टफलकीय रिक्तियाँ की दुगनी होती है। 

Post a Comment

0 Comments