संसाधनों के उपयोग के संदर्भ में किए गए अंतरराष्ट्रीय प्रयास
क्लब ऑव रोम ( 1968 ) :-
क्लब ऑव रोम ने 1968 में पहली बार अंतरराष्ट्रीय स्तर पर संसाधनों के विवेकपूर्ण उपयोग का प्रस्ताव रखा।
विश्व शिखर सम्मेलन ( 1972 ) :-
स्टॉकहोम में पर्यावरण संरक्षण के निमित्त पहला विश्व शिखर सम्मेलन जून 1972 में आयोजित किया गया था इसमें उपस्थित सदस्यों ने समवेत स्वर से पर्यावरण संरक्षण करने का संकल्प लिया था इसी के बाद से पूरे विश्व में प्रतिवर्ष 5 जून को पर्यावरण दिवस के रूप में मनाया जाता है।
स्मॉल इज व्यूटीफुल ( 1974 ) :-
महात्मा गाँधी हमेशा लघु या कुटीर - उधोगों के पक्ष में रहे। वे आर्थिक क्रियाकलापों के विकेंद्रीकरण पर जोर देते थे वे बड़े उद्योगों के विरोधी नहीं थे वरन उनका विचार था की बड़े उद्योग तभी स्थापित किए जाए जब उनके उत्पादों को छोटे उद्योगों में न बनाया जा सके क्योंकि बड़े उद्योगों की मशीने रोजगार के अवसरों को कम कर देती है और पूँजी का केंद्रीकरण करती है शुमेसर ने भी 1974 में अपनी पुस्तक स्मॉल इज व्यूटीफुल में गाँधीजी के इन विचारों का जोरदार समर्थन किया।
आवर कॉमन फ्यूचर ( 1987 ) :-
ब्रुंड्टलैंड कमीशन ने आर्थिक क्रियाकलापों का विश्व स्तर पर गहन अध्ययनकर प्राकृतिक संसाधनों के संरक्षण और उपयोग के लिए पूरे विश्व के संदर्भ में अपनी रिपोर्ट पस्तुत की इसमें पहली बार सतत पोषणीय विकास का विचार प्रस्तुत किया गया बाद में उन्होंने हमारा साझा भविष्य नाम,से एक पुस्तक भी प्रकाशित की जिसमें भविष्य की आवश्यकताओ को ध्यान में रखकर संसाधनों के वर्तमान उपयोग का विवेचन किया गया है इस रिपोर्ट का प्रभाव पूरे विश्व में इस प्रकार फैला की सभी उद्वेलित हो उठे और फिर विश्व के 170 देशों ने ब्राजील में बैठकर इस समस्या पर गहराई से विचार - विमर्श किया। इस बैठक को पृथ्वी सम्मेलन के नाम से जाना जाता है।
विश्व पर्यावरण सम्मेलन ( 1987 ) :-
कनाडा के मोंट्रियल नगर में ग्रीनहाउस गैसों की वायुमंडल में असंतुलित वृद्धि पर चिंता प्रकट की गई उद्योग प्रमुख देशो से अनुरोध किया गया की वे वायुमंडल को प्रदूषित करनेवाली गैसों के उत्सर्जन को नियंत्रित करें।
प्रथम पृथ्वी सम्मेलन ( 1992 ) :-
रियो डी जेनेरो के पृथ्वी सम्मेलन में पूरे विश्व में पर्यावरण के क्षरण तथा विभिन्न भागों में असंतुलित आर्थिक विकास से उत्पन्न समस्याओ पर विचार करने के लिए 1992 में 170 देशों ने एक बैठक की। इसमें भूमंडलीय तापन जलवायु में परिवर्तन , जीवमंडल को होनेवाली हानि जैसी अनेक समस्याओ का गहन विवेचन किया गया और पृथ्वी को विनाश से बचाने का संकल्प लिया गया इस सम्मेलन के कार्यक्रम 21 में सतत पोषणीय विकास का उल्लेख है जो इक्कीसवीं सदी में आनेवाली परिस्थियों को ध्यान में रखकर प्रस्तुत किया गया था संयुक्त राष्ट्र के पर्यावरण और विकास सम्मेलन में इसका उल्लेख किया गया है इसमें पर्यावरण को होनेवाली हानि , गरीबी , स्वास्थ्य समस्याओ इत्यादि को हल करने के लिए विश्व स्तर पर पारस्परिक सहयोग पर तो बल दिया ही गया है सतत पोषणीय विकास पर विशेष बल दिया गया है सभी देशों से अनुरोध किया गया है कि वे क्षेत्रीय परिस्थितियों को देखते हुए समुचित नियमों का निर्धारण करें तथा उनका पालन कराई से करें और सतत पोषणीय विकास के लिए स्थानीय लोगों को जागरूक बनाने का प्रयास करें इस कार्यक्रम पर होनेवाले खर्च को वहन करने के लिए विश्व पर्यावरण कोष की स्थापना की गई।
द्वितीय पृथ्वी सम्मेलन ( 1997 ) :-
प्रथम पृथ्वी सम्मेलन द्वारा पारित प्रस्तावों और सुझावों के मूल्यांकन के लिए 1997 में 23 जून से 27 जून तक न्यूयॉर्क में पुनः सम्मेलन आयोजित किया गया। 5 वर्षो के कार्यो और प्रगति का मूल्यांकन होने के कारण इसे 5 प्लस सम्मेलन भी कहा जाता है।
क्योटो सम्मेलन ( 1997 ) :-
जापान के क्योटो शहर में दिसंबर 1997 में आयोजित यह सम्मेलन मुख्यतः भूमंडलीय तापन पर केंद्रित था क्योंकि इसका विरोध संसाधनों पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है इस सम्मेलन में 159 देशों ने भाग लिया। 1987 के मोंट्रियल के ग्रीनहाउस सम्मेलन के उद्देशो पर विस्तार से विचार - विमर्श किया गया सम्मेलन ने 6 विशिष्ट गैसों को भूमंडलीय तापन के लिए मुख्य रूप से जिम्मेदार घोषित किया।
तृतीय पृथ्वी सम्मेलन ( 2002 ) :-
दक्षिण अफ्रीका के जोहांसबर्ग नगर में 2002 में आयोजित इस सम्मेलन में पर्यावरण से संबंधित 150 धाराओं पर विस्तृत चर्चा के बाद विश्वस्तरीय सहमति बनाने का प्रयास किया गया , परंतु मत - भिन्नता के कारण इस पर व्यापक सहमति नहीं बन पाई सम्मेलन में उपस्थित विश्व के विभिन्न देशों के लगभग 2000 प्रतिनिधियों ने इस समस्या के समाधान के लिए पुनः वार्ता करने का निर्णय लिया।
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