जलाभाव
स्वेडन के जल संसाधन विशेषज्ञ फॉल्कन मार्क के अनुसार यदि प्रतिव्यक्ति प्रतिदिन 1000 घन मीटर की दर से भी उपलब्ध न हो तो इसे जलाभाव कहते है जल एक कीमती और दुर्लभ संसाधन है अतः इसका उपयोग सुनियोजित ढंग से किए जाने की आवश्यकता है किसी वर्ष यह बहुत अधिक उपलब्ध होता है तो कभी दुर्लभ भी हो जाता है देश के शुष्क प्रदेशों में जल बहुत कठिनाई से प्राप्त होता है बाढ़ की स्थिति में जल की विनाशकारी लीला देखी जाती है साथ ही सुखाड़ की स्थिति में भी। उपलब्ध जल के उपयोग की योजना बनाना नितांत आवश्यक है।
सिंचाई के लिए जल का उपयोग बढ़ता जा रहा है कल - कारखाने वाले उद्योगों के विकास और हमारी जनसंख्या में तेजी से वृद्धि के कारण भी हमें जल की अधिक आवश्यकता है आज जनसंख्या के एक बड़े भाग के लिए शुद्ध पेयजल का प्रबंध करना अत्यावश्यक है यह दुर्भाग्य है की नदियों का देश भारत स्वच्छ पेयजल के अभाव से ग्रसित है नदियों और जलाशयों का जल प्रदूषित होता जा रहा है उनमें कचरे भरते जा रहे है जिससे उनका जल अशुद्ध होता जा रहा है अशुद्ध जल अनेक बीमारियों को जन्म देता है शुद्ध जल के भंडारण और संरक्षण की व्यवस्था न की जा सकी तो जीना दुर्लभ हो जाएगा कृषि - प्रधान देश होने के कारण हमें सिंचाई की सुविधा जुटानी है उद्योगों को विकसित करने के लिए कल - कारखाने को भी पानी देना है और मानव संसाधन को भी जल की आपूर्ति करनी है जल की आवश्यकता सभी जीव - जंतुओं को है अतः जल संसाधन का संरक्षण विभिन्न स्तरों पर होना चाहिए।
जलाभाव के मुख्य कारण :-
- देश के कई भागों में अपर्याप्त वर्षा होना
- जनसंख्या - वृद्धि से जल की माँग बढ़ना
- नकदी फसलों की खेती में जल की अधिक खपत
- बढ़ते जीवन - स्तर के परिणामस्वरूप जल की खपत बढ़ना
- नलकूपों से अधिक जल निकासी के फलस्वरूप भूमिगत जल में कमी
- जल संचय के लिए अधिक से अधिक जलाशयों का निर्माण
- एक क्षेत्र से दूसरे क्षेत्र में जल के स्थानांतरण की सुविधा
- भूमिगत जलस्तर उठाने के लिए अनुकूल परिस्थितियाँ पैदा करना जैसे - खेत के चारों ओर नालियाँ बनाना , छोटी - छोटी नदियों में बाँध बनाना।
- जलसंभर का विकास अर्थात सहायक नदियों की बेसिन में उपलब्ध जल का स्थानीय और समन्वित उपयोग एवं छोटे - छोटे क्षेत्रों का समुचित विकास किया जाए इसमें स्थानीय लोगों को भागीदार बनाकर वृक्षारोपण , मिट्टीसुधार , कृषि का विकास , चरागाह का विकास और जल संग्रहण कार्यक्रम अपनाएँ जाए भूमिगत जलस्तर उठाने के लिए वर्षा - जल को व्यर्थ बहने से रोककर उसका समुचित संग्रह किया जाए।
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