स्थानांतरी कृषि क्या है? स्थानांतरी कृषि की विशेषता को लिखे।

 स्थानांतरी कृषि 

जंगल से भरे क्षेत्रों में वहाँ रहनेवाले लोग कुछ पेड़ो को काटकर और जलाकर कृषियोग्य भूमि निकाल लेते है उस भूमि पर दो - तीन वर्षो तक खेती करते है भूमि की उत्पादन शक्ति घटते ही उस स्थान को छोड़कर वे दूसरे स्थान पर चले जाते है और इसी तरह कृषियोग्य भूमि निकालकर वहाँ खेती करते है इस प्रकार स्थान बदलते हुए लोग खेती करते चलते है इस कृषि - पद्धति में उत्पादन बहुत कम होता है छोड़ी गई भूमि पर मिट्टी का ह्रास होने लगता है और वह बेकार हो जाती है पूर्वी पहाड़ी राज्यों में स्थानांतरी कृषि अब भी पाई जाती है जिसे झूम खेती कहते है। 

स्थानांतरी कृषि की विशेषताएँ :-

  1. सर्वप्रथम समुदाय के बुजुर्ग और अनुभवी लोग जंगल के बीच खाली स्थान का चुनाव करते है। 
  2. प्रायः पहाड़ी ढाल इसके लिए अधिक उपयुक्त होते है क्योंकि वहाँ वर्षा - जल स्वतः बह जाता है। 
  3. उस चुने हुए भाग की झाड़िया को काटकर छोड़ दिया जाता है और सूखने पर उन्हें जला दिया जाता है इससे मिट्टी में कुछ उर्वरता आ जाती है। 
  4. बड़े पेड़ को प्रायः काटा नहीं जाता। 
  5. वर्षा से जमीन भीगने के बाद सधारण औजारों से उसकी जुताई की जाती है। 
  6. खेत छोटे - छोटे टुकड़े में होते है। 
  7. खेती के औजार , कुदाल , फावड़ा और खुरपी आदि होते है अब नजदीक के बजारों से ये भी खरीदे जाने लगे है। 
  8. प्रायः मक्का , शकरकंद , जौ , बाजरा , पहाड़ी धान , केला , सेब इत्यादि का उत्पादन किया जाता है। 
  9. एक बार लगातार 3 वर्षो तक खेती करने के बाद उस जमीन का उपयोग पहले 20 वर्षो तक नहीं किया जाता था परंतु आबादी बढ़ने के कारण अब कुछ कम वर्षो तक ही जमीन खाली रह पाती है इस दौरान उसमें प्राकृतिक रूप से उर्वरता बढ़ जाती है। 
  10. फसल - चक्रण के स्थान पर भूमि - चक्रण का ही प्रयोग होता है। 
  11. जोति हुई खाली जमीन में मृदा अपरदन अधिक होता है बरसात में ऊपर की कुछ उपजाऊ मिट्टी बह जाती है। 
  12. आजकल लोग स्थायी झोपड़ी या घर बनाकर रहने लगे है परंतु उनके निवास स्थान के आसपास की जमीन के कुछ टुकड़ो का ही एक बार प्रयोग किया जाता है और तीन वर्षो के बाद दूसरे टुकड़ो का प्रायः उनका घर इस जमीन के बीच में रहता है अनेक राज्यों में सरकारी प्रयास से निर्वाहन कृषि का प्रचलन बढ़ रहा है कहीं कहीं फसल - चक्रण की विधि अपनाई जा रही है। 
  13. नए उपकरणों का प्रवेश नहीं हो पाया है परंपरागत विधि से खेती करने पर बढ़ी हुई आबादी को भी रोजगार का अवसर मिल जाता है। 
  14. गाय , भैंस , भेड़ , बकरी , सुगर , ऊट इत्यादि जानवरों को अधिक पाला जाता है खेती की उपज कम होने पर ये उनकी आजीविका का काम करते है इनके दूध , मांस , ऊन भी उनके लिए उपलब्ध होते है। 
  15. फसल बरसात के प्रारंभ में बोई जाती है और बरसात समाप्त होते ही उसकी कटाई हो जाती है नम जमीन पर दूसरी फसल खरीफ बोई जाती है सिंचाई की आवश्यकता होने पर बॉस के पाइप , ढेंकुली इत्यादि से सिंचाई भी की जाती है। 
  16. धन के आभाव में रासायनिक उर्वरकों का प्रयोग नहीं होता।