लोहा - इस्पात उद्योग का वर्णन करें।
लोहा-इस्पात उद्योग
खनिज पर आधारित उद्योगों में सबसे अधिक महत्वपूर्ण लोहा - इस्पात उद्योग है जिसपर आधुनिक युग के छोटे-बड़े सभी उद्योग आश्रित है दिल्ली का लौह - स्तंभ ( 6 टन भारी ) इस बात का साक्षी है कि भारत में हजारों वर्ष पूर्व उत्तम कोटि का इस्पात बनाया जाता था इस देश में लोहे का व्यापक रूप से उपयोग होता आया है प्राचीनकाल ( वैदिक काल ) में भी इसके उपयोग का उल्लेख मिलता है महाभारत काल में इससे बने तरह - तरह के शस्त्रास्त्रों का प्रयोग किया जाता रहा। सिकंदर को पुरु ने लगभग 15 kg इस्पात का एक गोला भेंट दिया था ( ईसा पूर्व ) उन दिनों भारत का इस्पात दूर - दूर के देशो में जाता था दमिश्क़ की तलवारें भारतीय इस्पात से ही बना करती थी ओडिशा के कोणार्क मंदिर में प्राचीनकाल की बनी लोहे की करिया देखी जा सकती है।
विकास और उत्पादन :-
भारत में लोहा - इस्पात का कारखाना सबसे पहले 1830 में तमिलनाडु में पोर्टोनोवो नामक स्थान पर स्थापित किया गया परंतु प्रतिकूल परिस्थितियों और स्थानीय कारणों से इसे बंद कर दिया गया इसके बाद लोहा गलाने और इस्पात बनाने का आधुनिक ढंग का पहला सफल कारखाना 1874 में बराकरघाटी के कुल्टी नामक स्थान पर खुला। यह छोटा कारखाना था जो पीछे चलकर बराकर आइरन वकर्स के नाम से प्रसिद्ध हुआ। आज यह कारखाना बर्नपुर के इंडियन आइरन एंड स्टील कंपनी में संयुक्त है।
आधुनिक ढंग का बड़ा कारखाना 1907 में सुवर्णरेखाघाटी के साकची नामक स्थान पर खुला यह स्थान संस्थापक जमशेदजी टाटा के नाम पर जमशेदपुर कहलाया। कारखाने का नाम पड़ा टाटा आइरन एंड स्टील कंपनी इसी के निकट बर्नपुर में भी 1919 में एक कारखाना खोला गया जो आज इंडियन आइरन एंड स्टील कंपनी के नाम से प्रसिद्ध है।
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