विधुत आवेश
वे भौतिक राशि जिसके कारण पदार्थ में अन्य हल्की वस्तुओ को आकर्षित करने का गुण आ जाता है तथा विधुत संबंधी प्रभाव उत्पनन होते है उसे विधुत आवेश कहते है
- चूकि इसकी उत्पति घर्षण के कारण होती है इसलिए इसे घर्षण विधुत कहते है
- चूकि जिस वस्तु पर यह उत्पन्न होती है उस वस्तु पर स्थिर रहती है इसलिए इसे स्थिर विधुत भी कहा जाता है
- यह एक अदिश राशि है
- ऐसे Q से सूचित किया जाता है
- इसका विमीय सूत्र [ AT ] होता है
- इसका S.I मात्रक कूलम्ब होता है
- इसका C.G.S मात्रक स्टेट कूलम्ब होता है
- एक इलेक्ट्रॉन पर आवेश 1.6 * 10-19C होता है
- सन 1750 ईo में अमेरिकी वैज्ञानिक बैंजामिन फ्रेंकलिन ने काँच की छड़ पर उत्पन्न आवेश को धनआवेश तथा एवोनाइट की छड़ पर उत्पन्न आवेश को ऋणावेश नाम दिया।
- दो आवेशों के बीच जो गुण विभेद या अंतर पैदा करते है उसे आवेश की ध्रुवता कहते है।
- हेनरी केबेन्डिस नामक वैज्ञानिक ने बताया की सजातीय आवेश एक दूसरे को प्रतिकर्षित या विकर्षित करते है जबकि विजातीय आवेश एक दूसरे को आकर्षित करते है इसे केबेन्डिस का स्थिर विधुत आकर्षण - प्रतिकर्षण नियम कहा जाता है
- वे पदार्थ जो आसानी से इलेक्ट्रॉन को त्याग करते है उसे धनावेशित पदार्थ कहते है तथा जो आसानी से इलेक्ट्रॉन को ग्रहण करते है उसे ऋणावेशित पदार्थ कहते है
- जब काँच की छड़ तथा रेशम के धागे को रगड़ने पर काँच की छड़ में धनावेश तथा रेशम की धागे पर ऋणावेश उत्पन्न होता है
- इसी प्रकार एबोनाइट की छड़ / रबर या एमबर को ऊन से रगड़ने पर उन या फड़ में धनावेश तथा एबोनाइट की छड़ में ऋणावेश उत्पन्न होता है
- किसी वस्तु पर आवेश की उपस्थिति तथा उसकी प्रकृति का पता लगाने वाले उपकरण को विधुतदर्शी कहते है
विधुत आवेश के प्रकार :-
विधुत आवेश दो प्रकार के होते है
- धन आवेश
- ऋण आवेश
विधुत आवेश के मौलिक गुण :-
- विधुत आवेश की योज्यता
- विधुत आवेश का संरक्षण
- विधुत आवेश का क्वाटमीकरण
- विधुत आवेश की अचरता
विधुत आवेश की योज्यता :-
किसी विशाल वस्तु पर कुल आवेश का मान वस्तु के विभिन्न भागों में उपस्थित सभी आवेशों के बीजगणितीय योगफल के बराबर होता है इसे ही विधुत आवेश की योज्यता कहते है अर्थात विधुत आवेश योग्यात्मक होते है
- यदि किसी वस्तु के A , B , C तथा D बिंदु पर क्रमश q1 , q2 , q3 तथा q4 आवेश स्थित हो तो उस वस्तु पर कुल आवेश Q = q1 + q2 + q3 + q4
विधुत आवेश का संरक्षण :-
किसी विलगित निकाय में आवेश को न तो उत्पनन किया जा सकता है और न ही इसे नष्ट किया जा सकता है सिर्फ एक वस्तु से दूसरे वस्तु में स्थानांतरित किया जा सकता है इसलिए इसे विधुत आवेश का संरक्षण सिद्वांत कहते है
- यह एक सार्वत्रिक नियम है क्योकि इसका कोई अफवाद नही है।
विधुत आवेश का क्वाटमीकरण :-
विधुत आवेश वह गुण है जो बताता है की किसी वस्तु पर कुल आवेश का मान मुल आवेश ( e ) का पूर्ण गुणज होता है तथा इसे ( e ) के पदों में ही परिवर्तित किया जा सकता है।
अर्थात , q = ne जहाँ q = कुल आवेश , n = 1 , 2 , 3 ------ , e = इलेक्ट्रॉन पर आवेश
- इलेक्ट्रॉन परआवेश 1.6 *10-19 को ही मूल आवेश कहा जाता है
- आवेश कभी भी भिन्न e/2 + e/3 के रूप में नहीं हो सकता है
किसी वस्तु पर विधुत आवेश परिवर्तित नही होते है चाहे वस्तु या प्रेक्षक की चाल कुछ हो इसे ही विधुत आवेश की
अचरता कहते है।
अर्थात , विरावस्था में आवेश = गतिशील अवस्था में आवेश
अतः विधुत आवेश निर्देश तंत्र से स्वतंत्र अर्थात अचर होते है।
विधुत आवेश का इतिहास :-
लगभग 600 ईo पूर्ण यूनानी दार्शनिक थेल्स ने देखा की एमबर नामक पदार्थ को उन से रगड़ने के पश्चात उसमे हल्की वस्तुएँ जैसे कागज के टुकड़े हल्के पंख धूल - कणो आदि को अपनी और आकर्षित करने का गुण उत्पनन हो जाता है।
इसके बाद 16वी शताब्दी में इग्लैंड के चिकितसक डॉक्टर विलियम गिलवटी ने अपने प्रयोगो द्वारा पता लगाया की एमबर की तरह अनेक अन्य पदार्थो जैसे एबोनाइट , काँच , गंधक आदि को भी रगड़ने के पश्चात उसमें हल्की वस्तुओ को आकर्षित करने का गुण आ जाता है।
सन 1646 ईo में सर थोमस ब्राउन ने उस ऊर्जा का नाम विधुत दिया जिसके कारण पदार्थो में हल्की वस्तु को आकर्षित करने का गुण आ जाता है जिन वस्तुओ में अन्य हल्की वस्तुओ को आकर्षित करने का गुण आ जाता है उसे विधुतिकृत या आवेशित कहा जाता है।
विधुत आवेश और द्रव्यमान में अंतर :-
विधुत आवेश :-
- इसका मान धनात्मक या ऋणात्मक दोनों हो सकता है
- यह कवाटमीकृत होता है
- यह हमेशा संरक्षित रहते है
- आवेशों के बीच लगने वाला बल आकर्षण या प्रतिकर्षण बल प्रकृति का हो सकता है
- S.I पद्धति में आवेश एक व्युत्पनन भौतिक राशि है
द्रव्यमान :-
- इसका हमेशा धनात्मक होता है
- यह कवाटमीकृत नही होता है
- यह संरक्षित नही रहते है
- द्रव्यमान के बीच लगने वाला बल हमेशा आकर्षण प्रकृति का होता है
- यह S.I पद्धति में एक मूल राशि है
कूलंब बल :-
आवेश के बीच लगने वाले बल को कूलंब बल कहते है।
कूलंब का नियम :-
किसी निकाय में विरामवस्था में दो बिंदु आवेशों के बीच क्रियाशील आकर्षण या प्रतिकर्षण बलों के संदर्भ में कूलंब नामक वैज्ञानिक ने एक नियम का प्रतिपादन किया जिसे कूलंब का नियम कहते है।
इस नियम के अनुसार :-
विरामवस्था स्थित किसी दो बिंदु आवेशों के बीच क्रियाशील आकर्षण या प्रतिकर्षण बल उन दोनों आवेशों के गुणनफल के समानुपाती होता है तथा उनके बीच की दूरी के वर्ग के व्युत्क्रमानुपाती होता है।
यदि दो बिंदु आवेश क्रमशः q1 तथा q2 A और B बिंदु पर r दूरी पर स्थित हो तो उनके बीच क्रियाशील आकर्षण या प्रतिकर्षण बल ( कूलंबिक बल ) F हो तो ,
कूलंब के नियम से ,
F ∝ q1 * q2 ------- समीकरण (1)
F ∝ 1/r2 ---------समीकरण ( 2 )
समीकरण ( 1 ) तथा ( 2 ) से
F ∝ q1 * q2/r2
F = K * q1 * q2/r2
जहाँ K = कूलाँमबिक नियतांक
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