Manish Sharma

यूनानी स्वतंत्रता संग्राम के कारणों और परिणामों का उल्लेख करे।

 यूनान का स्वतंत्रता संग्राम 

यूनान प्राचीन और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राष्ट्र था इसका अतीत गौरवमय था यहाँ की साहित्यिक , कलात्मक , दार्शनिक वैज्ञानिक एवं चिकित्सा - संबंधी उपलब्धियों से पूरा यूरोप प्रभावित हुआ था पुनजार्गरण काल में यूनानी सभ्यता - संस्कृति अनेक राष्टों के लिए प्रेरणादायक बन गई 15वी शताब्दी में यूनान ऑटोमन साम्राज्य के अंतर्गत आ गया इस साम्राज्य के अंतर्गत विभिन्न भाषा , धर्म और नस्ल के निवासी थे तुर्की ने ऑटोमन साम्राज्य के प्रति उनमें लगाव की भावना नहीं थी क्योंकि उन्हें तुर्की ने अपने साम्राज्य में आत्मसात करने का प्रयास नहीं किया था 18वी शताब्दी से तुर्की की शक्ति कमजोर पड़ने लगी। उसे यूरोप का मरीज कहा जाने लगा साम्राज्य की कमजोरी का लाभ उठाकर राष्ट्र्वादी तत्त्व सक्रिय हो गए 18वी शताब्दी के अंतिम चरण तक यूनान में राष्ट्र्वादी विचारधारा बलवती होने लगी 1789 की फ़्राँसीसी क्रांति नेपोलियन के युद्धों और वियना कांग्रेस के विरुद्ध आक्रोश ने इस विचारधारा को आगे बढ़ाया राष्ट्र्वादी भावना के विकाश में धर्म की प्रमुख भूमिका थी यूनानी , यूनानी चर्च के अनुयायी थे समान धार्मिक भावना के कारण उनमे जातीय एकता की अनुभूति हुई 18वी शताब्दी के अंत में यूनान में बौद्धिक आंदोलन भी हुआ कोरेइस नामक दार्शनिक ने यूनानी में राष्ट्रप्रेम की भावना का प्रचार किया अपने लेखो द्वारा उसने यूनानियों को उनकी प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा के प्रति जागरूक रहने का संदेश दिया कान्सटेनटाइन रिगास नामक एक अन्य नेता ने गुप्त समाचारपत्रों का प्रकाशन कर यूनानियों में तुर्की से स्वतंत्र होने की भावना प्रज्वलित की। यूनानियों में स्वतंत्रता की भावना जगने का एक कारण यह भी था की तुर्की साम्राज्य में उनकी स्थिति अन्य लोगो से अच्छी थी उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता थी प्रशासन में उन्हें उच्च पद प्राप्त थे तथा आर्थिक दृष्टि से वे समृद्ध थे यूनान में शक्तिशाली शिक्षित मध्यम वर्ग था जो राष्ट्रियता की भावना से प्रभावित था स्वतंत्रता - प्राप्ति के लिए यूनान में भी इटली के समान गुप्त क्रांतिकारी समितियाँ गठित की गई ऐसी समितियों में प्रमुख थी ओडेसा में स्थापित हिटोरिया फिल्के नामक संस्था इसका उद्देश्य बाल्कन क्षेत्र से तुर्की का प्रभाव समाप्त करना था इस संस्था की सदस्य - संख्या हजारो में थी इसका प्रभाव यूनान के बाहर भी था। 

विद्रोह का आरंभ एवं स्वरूप :-

1821 में एलेक्जेंडर यिपसिलांति के नेतृत्व में मोलडेविया में विद्रोह हुआ इससे भयभीत होकर मेटरनिक ने रूस के सम्राट जार एलेक्जेंडर पर यूनानी विद्रोह को दबाने के लिए दबाब डाला। यधपि जार यूनानियों का समर्थन था परंतु उस पर मेटरनिक का प्रभाव था इसलिए रूस ने विद्रोहियों की सहायता नहीं की अतः तुर्की के सुल्तान ने सेना की सहायता से विद्रोह को कुचल दिया यिपसिलांति को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया विद्रोह की विफलता से यूनानी हताश नहीं हुए उन लोगो ने अपना संघर्ष जारी रखा। मोरिया द्वीप में दूसरा व्यापक विद्रोह हुआ विद्रोहियों को यूरोप के अन्य देशो से सहायता मिलने लगी कवियों और कलाकारों ने यूनान को यूरोपीय सभ्यता का पालना बताकर राष्टवादियो के लिए समर्थन जुटाया अनेक देशो से स्वयंसेवक यूनानी ईसाइयो की सहायता के लिए यूनान पहुंचे। विख्यात अगरेज कवि लॉड बायरन ने यूनानियों की धन से सहायता की तथा स्वयं भी युद्ध में भाग लेने पहुँचे वही 1824 में उनकी मृत्यु हो गई। तुर्की के सुल्तान महमूद द्वितीय ने मोरिया के विद्रोह को धार्मिक स्वरूप प्रदान किया। उसने इस्लाम की रक्षा के लिए मुसलमानो का आहन किया। सेना की सहायता से उसने यूनानी केंद्रों पर आक्रमण किया।1822 में लगभग बीस हजार यूनानी मौत के घाट उतार दिए गए सुल्तान स्वयं विद्रोह को दबाने में कठिनाई महसूस कर रहा था अतः उसने मिस्र के शासक पाशा महमत अली से सहायता की माँग की। उसने सेना और धन से सुलतान की सहायता की। यूनानियों का विद्रोह दबा दिया गया यूनानियों पर हुए अत्याचारों से यूरोप में आंदोलनकारियों के प्रति सहानुभूति की भावना जगी। उन्हें धन तथा हथियार भेजे गए। 1826 में ब्रिटेन और रूस यूनानी तुर्की संघर्ष में हस्तक्षेप करने को तैयार हो गए। नए जार निकोलस ने खुलकर यूनानियों का साथ देने का निर्णय लिया फ्रांसीसी सम्राट चाल्स दशम भी यूनान का समर्थन बन गए। 1827 के लंदन सम्मेलन में इंगलैंड , फ्राँस तथा रूस ने तुर्की के विरुद्ध संयुक्त करवाई करने का निशचय किया। तुर्की से राजनितिक संबंध तोड़कर रूस ने तुर्की के विरुद्ध युद्ध आरंभ कर दिया नावारिनो की खाड़ी में संयुक्त सेना इकठी हुई तुर्की की सहायता सिर्फ मिस्र ने की। रुसी सेना ने तुर्की को पराजित कर दिया बाध्य होकर तुर्की को रूस के साथ 1829 में एड्रियानोपुल की संधि करनी पड़ी। संधि के द्वारा सुलतान ने यूनान में वंशानुगत राजशाही और यूनान के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया यूनानी राष्ट्र्वादी इससे संतुष्ट नहीं हुए उन लोगो ने संधि को ठुकरा दिया। इंगलैंड तथा फ्राँस भी यूनान पर रूसी प्रभाव की स्थापना के विरोधी थे अतः 1832 में कुस्तनतुनिया की संधि द्वारा स्वतंत्र यूनान राष्ट्र की स्थापना हुई बवेरिया के राजकुमार ऑटो को यूनान का शासक बनाया गया। यूनान तुर्की शासन से मुक्त हो गया। रुसी प्रभाव भी यूनान पर से समाप्त हो गया। 

यूनानी स्वतंत्रता संग्राम के परिणाम :-

यूनानियों ने लंबे और कठिन संघर्ष के बाद ऑटोमन साम्राज्य के अत्याचारी शासन से मुक्ति पाई। यूनान के स्वतंत्र और संग्रभु राष्ट्र का उदय हुआ। यधपि इस प्रक्रिया में गणतंत्र की स्थापना नहीं हो सकी , परंतु एक स्वतंत्र राष्ट्र के उदय ने मेटरनिक की प्रतिक्रियावादी नीति को गहरी ठेस लगाई। प्रतिक्रियावादी के विरुद्ध राष्ट्रवाद की विजय हुई। यूनानियों की विजय से 1830 के क्रांतिकारियों को प्रेरणा मिली। बाल्कन क्षेत्र के अन्य ईसाई राज्यों में भी राष्ट्रवादी आंदोलन आरंभ करने की चाह बढ़ी। 


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