Manish Sharma

भारत में औधोगिकीकरण के छह प्रभावों को लिखे ?

भारत में औधोगिकीकरण का प्रभाव

औधोगिकीकरण का भारत पर व्यापक प्रभाव पड़ा। जिस प्रकार औधोगिकीकरण ने ब्रिटेन के श्रमिकों की आजीविका , वहाँ के आर्थिक , सामाजिक , सांस्कृतिक एवं राजनितिक जीवन को प्रभावित किया वैसी ही स्थिति भारत में हुई यहाँ के आर्थिक और सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन आए औधोगिकीकरण के प्रभाव को निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है। 

उधोगो का विकाश :-

 औधोगिकीकरण और कारख़ानेदारी प्रथा के विकाश के पूर्व भारत में उत्पादन का कार्य छोटे गृह उधोगो में होता था इनमे कार्यरत शिल्पी आकर्षण और कलात्मक सामान बनाते है कारखानों और मिलो की स्थापना से इनका महत्त्व समाप्त हो गया। अब उत्पादन कारखानों में होने लगा। कपड़ा बुनने , सूत कातने की मिले स्थापित हुई मशीनों का व्यवहार कर कपड़ा , लोहा एवं इस्पात , कोयला , सीमेंट , चीनी , कागज , शीसा और अन्य उधोग स्थापित हुए जिनमे बड़े स्तर पर उत्पादन हुआ इस प्रकार औधोगिकीकरण से भारतीय उधोगो का विकाश हुआ। 

नगरीकरण को बढ़ावा :-

औधोगिकीकरण ने नगरीकरण को बढ़ावा दिया। औधोगिक केंद्र नगर के रूप में परिवर्तित हुए। वहाँ बाहर के लोगो के आकर बसने से जनसंख्या में वृद्धि हुई। आवागमन के साधनो का विकाश हुआ तथा बाजार बसे। वे स्थान नगर के रूप में विकसित हुए। औधोगिकीकरण के कारण पुनारे नगरों , जैसे बंबई , कलकत्ता की समृद्धि में वृद्धि हुई तो बिहार में नए नगर भी विकसित हुए जैसे जमशेदपुर , बोकारो इत्यादि। 

कुटीर उधोगो की अवनति :-

कारखानों की स्थापना से परंपरागत लघु एवं कुटीर उधोगो का पतन हो गया। इसका एक मुख्य कारण था कारखानों में उत्पादित सामान सस्ते थे जबकि कुटीर उधोगो में उत्पादित सामान महगें होते थे इसलिए बाजार में इनकी माँग घट गई सरकारी नीतियों के कारण कुटीर उधोगो को कच्चा माल मिलना भी दुर्लभ हो गया। फसलतः ये बंदप्राय हो गए।

कृषि एवं उधोग का संतुलन नष्ट होना :- 

इंगलैंड में परंपरागत उधोगो का स्थान कारखानों ने लिया , लेकिन भारत में वैकल्पिक उधोगो का विकाश नहीं हो सका। अतः कुटीर उधोगो में संलग्न कारीगर एवं शिल्पी अपना व्यवसाय छोड़कर खेती में लग गए जिनके पास अपनी जमीन नहीं थी वे खेतिहर मजदूर बन गए बहुत याद में वे कारखानों और मिलो में काम करने लगे। इस प्रकार कृषि एवं उधोग का संतुलन नष्ट हो गया। 

सामाजिक विभाजन :- 

भारत में औधोगिकीकरण के विकाश के साथ ही नए - नए सामाजिक वर्गो का उदय और विकाश हुआ। कल कारखानों में निवेश करने वाले पूँजीपति बन गए। उत्पादन और वितरण पर इनका नियंत्रण स्थापित हुआ। दूसरा वर्ग कारखानों में कार्यरत श्रमिक वर्ग का था इनके श्रम का लाभ पूँजीपतियो ने उठाया। इन दोनों के अतिरिक्त मध्यम वर्ग या बुर्जुआ वर्ग का भी उदय हुआ। इस वर्ग ने पूँजीपतियो के शोषण का विरोध किया तथा श्रमिकों के हक में आवाज उठाई। राष्ट्रीय आंदोलन में इस वर्ग की प्रभावशाली भूमिका रही। इसने औपनिवेशिक शोषण की नीति का भी विरोध किया। 

स्लम - पद्धति का उदय :-

कारख़ानेदारी प्रथा के विकास ने स्लम - पद्धति को भी जन्म दिया शहरों में स्थित कारखानों में काम करने के लिए श्रमिक गॉंव - घर छोड़कर शहर में आकर बसने लगे। वहाँ उनके आवास की समुचित व्यवस्था नही थी उन्हें छोटे , अस्वास्थ्यकर , अस्थाई निवासो में रहना पड़ा। जैसे में बंबई के चॉल। कारखानों के इर्द - गिर्द मजदूरों की बस्तियाँ या स्लम बस गए। मजदूरों को इनमे नारकीय जीवन व्यतीत करना पड़ा। 

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