कोयले का प्रादेशिक वितरण
कोयले का प्रादेशिक वितरण निम्नलिखित है :-
- गोंडवानाकाल का कोयला - भंडार
- तृतीययुगीन कोयला - भंडार
- लिग्नाइट कोयला - भंडार
झारखंड:-
स्वतंत्रता - प्राप्ति के बाद भारत की सभी कोयला खानों का राष्ट्रीयकरण कर श्रमिकों को शोषित होने से बचाने के उपाय किए जा रहे है साथ ही खुदाई वैज्ञानिक ढंग से की जाने लगी है और बरबादी से बचाते हुए संरक्षण पर जोर दिया जा रहा है अब कोयला के प्रमुख क्षेत्र इस प्रकार है 1. रानीगंज जहाँ 1774 से ही कोयला - उत्पादन हो रहा है , 2. झाड़िया 3. पूर्वी बोकारो तथा पश्चिमी बोकारो , 4. पेंचघाटी तथा तवाघाटी , 5. सिंगरौली , 6. चाँदा - वर्धा , 7. तालचर , 8. गोदावरीघाटी। इन कोयला खानों में भूमिगत जल की समस्या गहराती जा रही है जल निकालने के काम में कठिनाई और खर्च अधिक हो रही है।
- यहाँ देश के कुल कोयला - भंडार का 27 प्रतिशत सुरक्षित है।
- राष्ट्रीय कोयला - उत्पादन में इसकी भागीदारी 20 प्रतिशत है।
- दामोदरघाटी का यह कोयला धातु - निष्कासन के लिए महत्वपूर्ण है इस्पात बनाने की वात्या - भट्टी में प्रयुक्त होनेवाला कोक इसी कोकिंग कोल से बनाया जाता है यह मुख्यतः गिरिडीह में पाया जाता है।
- 1970 तक देश के इस्पात उधोग में इस क्षेत्र के कोयले की भागीदारी अधिक थी और राष्ट्रीय उत्पादन का 47 प्रतिशत यहाँ से प्राप्त किया जाता है परंतु अनेक उधोगों में आयातित कोक के उपयोग तथा देश के अन्य क्षेत्रों के कोयले के उपयोग से अब उत्पादन घट रहा है 2011 - 12 में देश के कुल कोयला - उत्पादन का मात्र 20 प्रतिशत झारखंड से प्राप्त हुआ था।
- कोयले का प्रमुख उत्पादन क्षेत्र झारखंड के ललमटिया , झरिया , बोकारो , गिरिडीह , कर्णपुरा और रामगढ़ है।
- गिरिडीह का कोयला कोकिंग कोल किस्म का है शेष भागों में कोयला प्राय बिटुमेनी किस्म का है।
- पश्चिम बंगाल के रानीगंज कोयला क्षेत्र का कुछ भाग झारखंड में पड़ता है यह कोयला प्राय एथ्रासाइट कोयला है जो सबसे अच्छा कोयला है।
छत्तीसगढ़ :-
- यह देश के कोयले के उत्पादन में प्रथम स्थान पर है यहाँ से देश का 21 प्रतिशत उत्पादन प्राप्त होता है।
- सुरक्षित भंडार की दृष्टि से इसका स्थान तीसरा है यहाँ देश का 17 प्रतिशत सुरक्षित भंडार है।
- उत्तरी छत्तीसगढ़ के क्षेत्र - चिरमिरी , कुरसिया , विश्रामपुर , झिलमिली , सोनहाट , लखनपुर इत्यादि दक्षिणी छत्तीसगढ़ के क्षेत्र - हसदो-रामपुर एवं रायगढ़ में माँड़।
ओडिशा :-
- यहाँ देश का 24 प्रतिशत कोयले का सुरक्षित भंडार है।
- सकल उत्पादन में इसकी भागीदारी 19.5 प्रतिशत है।
- यहाँ का कोयला उच्च कोटि का न होने के कारण वाष्प और गैस बनाने में प्रयोग किया जाता है।
- प्रमुख उत्पादन क्षेत्र तालचर है।
महाराष्ट्र :-
- यहाँ देश का मात्र 3.7 प्रतिशत कोयला सुरक्षित है।
- सकल उत्पादन में इसकी भागीदारी 7.3 प्रतिशत से भी अधिक है।
- इसके कोयला क्षेत्र चांदा - वर्धा , कांपटी और बंदेर है।
मध्य प्रदेश :-
- मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ के अलग होने से प्रमुख कोयला - क्षेत्र छत्तीसगढ़ में चला गया है अब मध्य प्रदेश में देश का मात्र 8.3 प्रतिशत सुरक्षित भंडार रह गया है।
- पूर्वोत्तर भाग के कोयला क्षेत्र सिंगरौली , सोहागपुर , उमरिया और जोहिल्ला तथा सतपुरा क्षेत्र में पेंचघाटी तथा तवाघाटी , पथखेड़ा और मोहपानी है।
पश्चिम बंगाल :-
- देश के कोयले के सुरक्षित भंडार की दृष्टि से इसका स्थान चौथा है।
- कोयला - उत्पादन में इसका स्थान देश में सातवाँ है।
- मुख्य क्षेत्र रानीगंज है जिसका कुछ भाग झारखंड में पड़ता है दूसरा क्षेत्र दार्जिलिंग है कोयले की सर्वोत्तम किस्म एथ्रासाइट के कारण यह अत्यंत महत्तपूर्ण क्षेत्र है।
तृतीययुगीन कोयला - भंडार :-
टर्शियरी काल में बनने के कारण इस कोयले के बनने में कम समय लगा है इसीलिए इसकी गुणवत्ता कम है इसके प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित है :-
- मेघालय - दारगिरी , चेरापूँजी , लेतरीग्यु , माओलोंग और लंगरिन।
- ऊपरी असम - माकुम , जयपुर , नजीरा इत्यादि।
- अरुणाचल प्रदेश - नामचिक और नामरुक।
- जम्मू - कश्मीर - कालाकोट ( यह कोयला हिमालय के निर्माण काल में हुए भू - संरचन और भू - धसान से दबकर चूर - चूर हो गया है। )
- नगालैंड , उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में भी कहीं - कहीं कोयला का सुरक्षित भंडार है।
लिग्नाइट कोयला - भंडार :-
- निम्न कोटि के इस कोयले का देश में 4196 करोड़ टन का सुरक्षित भंडार है।
- 81 प्रतिशत , अर्थात 3388 करोड़ टन भंडार केवल तमिलनाडु में है इसका खनन नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन लिमिटेड करता है।
- 19 प्रतिशत लिग्नाइट - भंडार छिटपुट रूप से राजस्थान , गुजरात , केरल एवं जम्मू कश्मीर में भी है।
- भारतीय खान ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार 1 अप्रैल 2012 तक राजस्थान में 490.47 करोड़ टन , गुजरात में 272.2 करोड़ टन , पुदुचेरी में 41.6 करोड़ टन , जम्मू - कश्मीर में 2.7 करोड़ टन और केरल में 0.9 करोड़ टन लिग्नाइट कोयला - भंडार सुरक्षित है।
स्वतंत्रता - प्राप्ति के बाद भारत की सभी कोयला खानों का राष्ट्रीयकरण कर श्रमिकों को शोषित होने से बचाने के उपाय किए जा रहे है साथ ही खुदाई वैज्ञानिक ढंग से की जाने लगी है और बरबादी से बचाते हुए संरक्षण पर जोर दिया जा रहा है अब कोयला के प्रमुख क्षेत्र इस प्रकार है 1. रानीगंज जहाँ 1774 से ही कोयला - उत्पादन हो रहा है , 2. झाड़िया 3. पूर्वी बोकारो तथा पश्चिमी बोकारो , 4. पेंचघाटी तथा तवाघाटी , 5. सिंगरौली , 6. चाँदा - वर्धा , 7. तालचर , 8. गोदावरीघाटी। इन कोयला खानों में भूमिगत जल की समस्या गहराती जा रही है जल निकालने के काम में कठिनाई और खर्च अधिक हो रही है।
उत्पादन :-
1951 में कोयले का उत्पादन 3.5 करोड़ टन था जो 2000 में 30 करोड़ टन पहुँच गया था 2007 और 2009 में क्रमश 45.6 और 48.8 करोड़ टन कोयले का उत्पादन हुआ। 2013 में 55.6 करोड़ टन कोयले का उत्पादन हुआ तथा 2014 में 56.6 करोड़ टन। सारे संसार के कोयला - उत्पादन देशो में भारत का स्थान तीसरा है भारत सरकार ने अब कोयले का उत्पादन अपने हाथ में ले लिया है और सार्वजनिक क्षेत्र में राष्ट्रीय कोयला विकास निगम की स्थापना की है यह हमारे देश में कोयला - क्षेत्रों का तेजी से विकाश कर रहा है और कोयले की बरबादी को रोकने के लिए प्रयत्नशील है।
उपयोग और व्यापार :-
कोयला के विविध उपयोग है दो - तिहाई कोयले का उपयोग विधुत उत्पन्न करने में होता है शक्ति के साधन के अतिरिक्त यह लोहा - इस्पात तैयार करने , सीमेंट बनाने और रसायन उधोग में काम आता है इसका उपयोग तरह - तरह के समान बनाने में भी किया जाता है जैसे अलकतरा , रंग - रोगन , सुगंधित तेल , कृत्रिम रबर , कृत्रिम चीनी ( सेकरीन ) , कृत्रिम धागे ( नाइलॉन ) , फिनायल , कीटनाशक दवाए , युद्ध के बहुतेरे सामान आदि। चूल्हा जलाने से लेकर समुंद्री जहाज चलाने में भी इसका उपयोग किया जाता है अपनी बढ़ती उपयोगिता के कारण ही यह काला हीरा कहलाता है। भारत अपने पड़ोसी देशों को उत्पादन का 5 % निर्यात करता है मुख्यतः बांग्लादेश , म्यांमार , श्रीलंका , सिंगापुर और जापान को कोलकाता इसका प्रमुख निर्यातक पत्तन है।
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