वनों का संरक्षण
वन हमें विभिन्न उत्पाद प्रदान करते है फिर ये नवीकरण योग्य संसाधन है अतः इनके संरक्षण की ओर ध्यान देना अत्यावश्यक है।
वनों के संरक्षण के लिए निम्नलिखित उपाय किए जा सकते है :-
- जिन क्षेत्रों से निकट या अतीत में वृक्ष काट डाले गए वहाँ पुनः वृक्षारोपण किया जाए वृक्षारोपण से न केवल वन संपदा की वृद्धि होगी बल्कि मिट्टी का कटाव कम होगा अपवाह घटेगा और भूमिजल की आपूर्ति में भी वृद्धि होगी।
- वनों से केवल सूखा वृक्ष ही काटे जाए अर्थात जिन वृक्षो का विकास अब और अधिक न होनेवाला है उन्हें ही काटकर निकाला जाए इससे विकासशील वृक्षो को बढ़ने का सुअवसर मिलेगा।
- वन क्षेत्र में कटाई के लिए फसल - चक्र पद्धति अपनाई जाए तो क्रम से वन विकसित होगा और नियमित लाभ होता रहेगा।
- वन क्षेत्र का विस्तार किया जाए अर्थात नए वन लगाए जाए।
- वनों की देखभाल ठीक से की जाए ताकि हमारी असावधानी से वहाँ आग न लगे आग की रोकथाम के लिए अगनिरक्षा पथ और अगनिरोधक पथ की व्यवस्था की जाए इससे आग के प्रसार को रोकने में सहायता मिलेगी वनों के बीच स्थान - स्थान पर निरीक्षण मीनार बनाए जाए आग बुझाने के लिए अग्निशामकों की भी व्यवस्था रहे।
- वन के संरक्षण के लिए एक निश्चित नीति हो। भारत सरकार ने वनों को सुरक्षित और संरक्षित तक घोषित किया है सुरक्षित वन बाढ़ की रोकथाम , भूमि कटाव से बचाव और मरुस्थलों के प्रसार को रोकने की दृष्टि से बड़े महत्त्व के है संरक्षित वनों में सरकार की ओर से लाइसेंस प्राप्त लोग ही लकड़ी काट सकते है हमारी वन - नीति के अनुसार समस्त क्षेत्र के 33 % पर वनों का विस्तार होना चाहिए और यह प्रतिशत पहाड़ी प्रांतों में 60 % तथा मैदानी प्रदेशों में 20 % होना चाहिए।
- वृक्षो में लगनेवाली दीमक तथा अन्य कीटाणुओं और बीमारियों से बचाव के लिए वायुयान द्वारा दवा का छिड़काव होना चाहिए।
- सामाजिक वानिकी प्रोत्साहित की जाए ( परती जमीन पर जल्द उगनेवाला उपयोगी पेड़ लगाना , जिससे फल , काष्ठ , ईधन आदि की समस्या हल हो तथा पर्यावरण को संतुलित बनाए रखने की योजना को मदद मिले सामाजिक वानिकी कहलाती है। )
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