वन और जीवों के प्रति भारत की आस्था
वनों और जीवों के प्रति भारत में एक विशेष लगाव रहा है धार्मिक रूप में भी अनेक वृक्षो को देवी - देवताओं की तरह पूजा जाता है पीपल , बरगद , तुलसी , आम , महुआ , कदंब , सखुआ इत्यादि पौधे कहीं न कहीं पूजे जाते है कुछ अन्य उदाहरण निम्नलिखित है -
- भारत में नदियों , वृक्षो , जंतुओं को स्वाभाविक रूप से परोपकारी माना गया है और उन्हीं के समान परोपकारी स्वभाव के मनुष्य को श्रेष्ठ या महात्मा माना गया है परोपकाराय फलन्ति वृक्षा : , परोपकाराय वहन्ति नध:। परोपकाराय दुहन्ति गाव : , परोपकाराय सतां विभूतये।।
- बौद्ध और जैन धर्मों में भी अहिंसा परमो धर्म : का उपदेश दिया गया है 487 ई० पू० में गौतम बुद्ध ने कहा था " पेड़ एक विशेष असीमित दयालु और उदारतापूर्ण जीवधारी है जो अपने सतत पोषण के लिए कोई माँग नहीं करता और दानशीलतापूर्वक अपने जीवन की क्रियाओं को भेंट करता है यह सभी की रक्षा करता है और स्वयं पर कुल्हाड़ी चलानेवाले विनाशक को भी छाया प्रदान करता है " आदमी को इससे कुछ तो सीखना चाहिए।
- ईसा पूर्व पहली शताब्दी में आयुर्वेद्र के जनक महर्षि चरक ने अपनी चरकसंहिता में 200 प्रकार के उपयोगी पशुओं और 340 प्रकार के उपयोगी पौधों का उल्लेख किया है और इनकी उपयोगिता का वर्णन किया है।
- लगभग 2400 वर्ष पूर्व सम्राट अशोक ने उस लंबी सड़क के किनारे पेड़ लगवाया था जिसे आज ग्रैंड - ट्रंक रोड के नाम से पुकारा जाता है उसी सम्राट अशोक ने बिहार के उत्तरी भाग में चंपा के वृक्षो से सेकड़ो किलोमीटर वन विकसित करवाया था इसीलिए आज भी इसे चंपारण के नाम से पुकारा जाता है इस वन में वन्य जीवों के शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध लगा था।
- 1731 की एक घटना है इस समय राजस्थान के जोधपुर जिले के विशनोई गाँव के पास के जंगलों में लकड़ी काटने के लिए तत्कालीन महाराजा के कुछ आदमी गए हुए थे महाराजा के लिए एक नए महल के निर्माण का विचार किया गया और इसके लिए उत्तम मजबूत लकड़ी जुटाने के लिए उन्होंने अपने आदमियों को जंगल में भेजा था उस समय गाँव के बहुत से लोग ने अमृता देवी नाम की एक महिला के नेतृत्व में लकड़ी काटने का विरोध किया फलस्वरूप राजा के आदमी खाली हाथ लौट गए राजा को पूरी घटना की जानकारी दी गई उन्होंने इस घटना पर क्रोध व्यक्त नहीं किया , बल्कि अपनी भूल पर पशचात व्यक्त किया और भविष्य में किसी जंगल से लकड़ी काटने या उसे हानि पहुँचाने पर प्रतिबंध लगा दिया वन संरक्षण के उनके प्रयास के लिए केवल उन्हें ही नहीं , बल्कि अमृता देवी को भी अब भी याद किया जाता है और आगे भी किया जाता रहेगा।
- राजस्थान के सरिस्का बाघ रिजर्व के वन्य जीवों के संरक्षण के लिए स्थानीय लोग खदानों में होनेवाले खनन - कार्य का विरोध कर रहे है उनका कहना है की इससे वनस्पतियों और जीवों को हानि पहुँच रही है।
- राजस्थान के ही अलवर जिले के पाँच गावों के लोगों ने 1200 हेक्टेयर वन क्षेत्र में बाहरी लोगों का प्रवेश रोक दिया है।
- आदिवासियों का तो जीवन ही जंगल पर निर्भर है और वे ही इसके सबसे बड़े संरक्षक भी है प्रजनन काल में वे मादा पशुओं का शिकार करना पाप समझते है पौधों के उगने के मौसम में वे अपने पशुओं को जंगल के उस भाग में चराने के लिए नहीं ले जाते है वन के संसाधनों का वे बड़ी चतुराई से चक्रिय क्रम में उपयोग करते है कभी - कभी विरल वनों में नए पौधों का रोपणकर उसे फिर से घना करने का कार्य करते है वस्तुतः वे वनवासी ही प्रकृति के सच्चे संरक्षक है।
- उत्तराखंड के टिहरी गढ़वाल जिले में सुंदरलाल बहुगुणा द्वारा संचालित चिपको आंदोलन बहुत प्रसिद्ध है जब आर्थिक लाभ के लिए ठीकेदारों ने इस क्षेत्र के हरे - भरे वृक्षो का सफाया करना प्रारंभ किया तो 1972 में बहुगुणा ने स्थानीय निवासियों को मिलाकर यह आंदोलन शुरू किया इस आंदोलन में कटनेवाले पेड़ से एक व्यक्ति चिपककर खड़ा हो जाता था और वृक्ष काटनेवालों से कहता था की पहले मुझपर कुल्हाड़ी चलाओ हमारे बाद ही यह पेड़ काटा जा सकेगा इस प्रकार इस क्षेत्र का प्राकृतिक वातावरण अक्षुण्ण रखा जा सका।
- जम्मू - कश्मीर , हिमालय प्रदेश , उत्तराखंड और उत्तरी पंजाब के वनों के संरक्षण के लिए स्थानीय लोगों का आंदोलन बहुत ही कारगार रहा है।
- जंतुओं को भी हानि नहीं पहुँचाई जाती है।
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