भारत में कृषि का महत्त्व
- भारत की 53.5 प्रतिशत आबादी के लिए रोजगार के अवसर कृषि - क्रियाकलापों से ही उपलब्ध होते है।
- यधपि देश के सकल राष्ट्रिय उत्पादन में कृषि का योगदान 13.7 प्रतिशत रह गया है तथापि ऐसा कृषि - उत्पादन की कमी से नही , वरन उधोगों के विकाश के कारण हुआ है वस्तुतः आज भी कृषि ही देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है।
- कृषि उत्पादन से ही देश की विपुल जनसंख्या को भरपेट भोजन उपलब्ध हो पाता है यदि खाद्यान्न - उत्पादन में देश आत्मनिर्भर नही रहता , तो उधोगों की सारी कमाई अन्न खरीदने में लग जाती।
- अनेक उधोगो के लिए कच्चे माल की आपूर्ति कृषि उत्पादनों से ही प्राप्त होती है सूति वस्त्र उधोग को कपास से , चीनी उधोग को गन्ने से , जूट उधोग को जूट के पौधो से कच्चा माल प्राप्त होता है वही जैम , जेली , स्कवॉश इत्यादि के लिए कच्चा माल फलो से प्राप्त होता है रेशम उधोग भी वस्तुतः शहतूत , मलबरी इत्यादि पौधो की पतियों के उपयोग से विकसित हो पाता है कागज उधोग का आधार भी कृषि उत्पाद ही प्रदान करते है इसी प्रकार के अनेक उधोग कृषि पर आधारित है।
- भारत के विभिन्न क्षेत्रों के जलवायु में विभिन्नता के कारण यहाँ कृषि उत्पादो में भी विभिन्नता पाई जाती है विशिष्ट क्षेत्र विशेष प्रकार की फसलों के लिए अत्यधिक अनुकूल पाए जाते है कृषि की इस विविधता के कारण पूरे विश्व में भारत का एक महत्वपूर्ण स्थान है सुपारी , नारियल , फल , दाल , चाय , जूट और दूध के उत्पादन तथा पशुधन में भारत विश्व में पहले स्थान पर है गेहूँ , मूँगफली , मछली और सब्जियों के उत्पादन में इसका स्थान दूसरा है चावल तथा तंबाकू के उत्पादन में यह विश्व में तीसरे स्थान पर है कपास - उत्पादन में चीन , अमेरिका और पाकिस्तान के बाद यह सबसे बड़ा उत्पादक देश है।
- अनेक कृषि उत्पाद या उनसे संबंधित या प्रसंस्कृत उत्पाद निर्यात किए जाते है जिनसे विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है।
- कृषि से अनेक उधोगो को बाजार भी प्राप्त होता है ट्रैक्टर , ट्रोली , हारवेस्टर , थ्रेसर , बिजली के मोटर , उर्वरक कीटनाशक इत्यादि के प्रयोग से कृषि द्वारा इनके उधोगो को प्रश्रय मिलता है।
कृषि भूमि का उपयोग :-
भारत के कुल भूभाग का आधा से भी कम प्राय 43 प्रतिशत भाग मैदानी है तथा शेष भाग में पहाड़ और पठार है फिर भी कुल मिलाकर प्राय 62 प्रतिशत भूमि पर कृषि की जाती है 15 प्रतिशत क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा के कारण अनेक फसले उगाकर गहन कृषि की जाती है परंतु शेष भाग में वर्षाधुन कृषि होती है कृषि - भूमि के उपयोग के संबंध में भू - राजस्व विभाग और भारतीय सर्वेक्षण विभाग से आंकड़े प्राप्त होते है जिसमे राजस्व विभाग के आंकड़े कम होते है क्योंकि कई भागो में कर - सीमा निर्धारण के कारण उनका उल्लेख नही हो पाता है।
2008 - 09 में भूमि उपयोग संवर्ग के आंकड़े :-
- वन क्षेत्र ------------- 22.78 प्रतिशत
- बंजर और व्यर्थ भूमि ----------- 8.61 प्रतिशत
- अकृष्य कार्यो में प्रयुक्त भूमि -------- 5.57 प्रतिशत
- स्थायी चरागाह और घास क्षेत्र -------- 3.38 प्रतिशत
- बाग - बगीचे --------- 1.11 प्रतिशत
- कृषि योग्य व्यर्थ भूमि ---------- 4.17 प्रतिशत
- पुरातन परती भूमि --------- 3.37 प्रतिशत
- वर्तमान परती भूमि ---------- 4.76 प्रतिशत
- निवल बोई भूमि --------- 46.24 प्रतिशत
भारत में भूमि - उपयोग में परिवर्तन :-
समय के साथ आर्थिक क्रियाकलापों में परिवर्तन होता रहता है इसका सीधा प्रभाव भूमि - उपयोग पर भी पड़ता है क्योंकि कुल भूमि का क्षेत्रफल तो सीमित है और सभी क्रियाकलापों के लिए स्थान का आबंटन इसी में से किया जाता है।
भारत में भूमि - उपयोग में परिवर्तन के कारण :-
- जनसंख्या में वृद्धि
- उधोगो का विकास
जनसंख्या में वृद्धि :-
देश की जनसंख्या में वृद्धि स्वाभाविक है और बढ़ती आबादी के लिए निवास और बस्तियों के निर्माण में भूमि के कुछ भाग का उपयोग हो जाता है।
उधोगो का विकास :-
उधोगो के विकास से उनकी स्थापना तथा परिवहन के लिए सड़क , रेलमार्ग बनाने तथा औधोगिक बस्तियों के निर्माण में कुछ कृषि - भूमि का उपयोग होता है
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