Manish Sharma

विधुत चालकता क्या है?

विधुत चालकता ( Electrical conductivity )  

किसी ठोस पदार्थ मे विधुत आवेश को प्रवाहित करने की जो क्षमता होती है उसे विधुत चालकता कहते है। 

विधुत चालकता के आधार पर ठोस या क्रिस्टल को तीन भागो मे बाटा गया है :-

  1. सूचालक ( conductor )
  2. अचालक ( insulator )
  3. अर्द्धचालक ( semiconductor )  
सूचालक या चालक :-

वे ठोस जिनमे विधुत धारा का प्रभाव आसानी से हो सकता है तथा जिसकी विधुत चालकता  107Ω-1m-1 होता है उसे सूचालक कहते है। 
  • चालक धातु या आयनिक ठोस हो सकते है 
  • मुक्त इलेक्ट्रॉन के प्रवाह के कारण धातु चालक होते है 
  • धातुओ की चालकता को करनेल तथा संयोजी इलेक्ट्रॉन वाले इलेक्ट्रॉन समुद्र प्रतिरूप सिद्धांत तथा आण्विक कक्षक सिद्धांत पर आधारित बेण्ड सिद्धांत द्वारा समझाया जा सकता है 
  • आयनिक ठोस आयनो के प्रभाव के कारण विधुत का चालन करते है 
  • आयनिक ठोस प्रायः ठोस अवस्था मे विधुत का चालन नही करते है लेकिन गलित या विलयन के अवस्था मे विधुत का चालन करते है। 
अचालक या कुचालक :-

वे ठोस जिनमे विधुत धारा का प्रभाव नही होता है तथा जिसकी विधुतीय चालकता  10-20 से  10-10 Ω-1m-1 के बीच होती है उसे कुचालक कहते है। 
  • इसे विधुत रोधी भी कहा जाता है 
  • वेणु सिद्धांत के अनुसार विधुत रोधी मे संयोजी बेण्ड और चालन बेण्ड मे बहुत अधिक ऊर्जा अंतराल होता है 
अर्द्धचालक :-

वे ठोस जिसमे विधुत धारा का प्रवाह अल्प मात्रा मे होता है तथा जिसकी विधुत चालकता 10-6 से 10Ω-1m-1 के बीच होता है उसे अर्द्धचालक कहते है। 
  • अर्द्धचालक के संयोजी बेण्ड और चालन बेण्ड मे ऊर्जा अंतराल बहुत कम होता है लेकिन ताप बढ़ने पर यह और भी बढ़ सकता है 
  • इसका उपयोग ट्रांजिस्टर डिजिटल कैमरा तथा डिजिटल कम्प्यूटर मे किया जाता है इसके अलावा इसका उपयोग सोलर बैटरी और टेलीविजन के सेटो मे किया जाता है। 
विधुत रोधी दो प्रकार के होते है :-
  1. आंतर अर्द्धचालक ( Interinsic semiconductor )
  2.  बाह्य अर्द्धचालक ( Extrinsic semiconductor )
आंतर अर्द्धचालक :-

जब किसी अचालक ठोस पदार्थो मे सहसंयोजन बंधन टूटने के कारण इलेक्ट्रॉन मुक्त हो जाते है और वे गमन करने लगते है जिससे विधुत का अल्प चालन होने लगता है तो इस प्रकार निर्मित अर्द्धचालक को आंतर अर्द्धचालक कहते है। 
  • इसे आंतर निहित अर्द्धचालक भी कहा जाता है। 

बाह्य अर्द्धचालक :-

जब किसी अचालक या अर्द्धचालक मे बाहरी अशुद्वियो को मिलाया जाता है तो उसमे विधुत चालकता आ जाती है या पहले की अपेक्षा विधुत चालकता मे वृद्वि हो जाती है तो इस प्रकार निर्मित अर्द्धचालक को बाह्य अर्द्धचालक कहते है। 

डोपिंग या डोपीन :-

किसी अचालक ठोस पदार्थो मे बाहर से अशुद्वियो के रुप मे त्रिसंयोजी या पंचसंयोजी तत्वो को मिलाकर अर्द्धचालक बनाने की प्रक्रिया को डोपीन कहा जाता है। 

n - टाइप अर्द्धचालक :-

जब किसी अर्द्धचालक मे उससे उच्च वर्ग वाले धातु परमाणु को मिलाया जाता है तो उससे निर्मित अर्द्धचालक को n - टाइप अर्द्धचालक कहते है। 

उदाहरण :- 

शुद्व Si विधुत रोधी होता है इसकी संरचना मे इसका प्रत्येक परमाणु चार अन्य Si परमाणु से सहसंयोजन बंधनो द्वारा चतुष्फलकीय रूप मे जुड़ा होता है 

यदि Si मे As की अल्प मात्रा मे मिला दिया जाए तो इसकी विधुत चालकता बढ़ जाती है जिससे Si अर्द्धचालक बन जाता है Si परमाणु मे चार संयोजी इलेक्ट्रॉन होते है जबकि As के परमाणु मे 5 अतः As का पंचम आबंधित इलेक्ट्रॉन मुक्त होकर क्रिस्टल चालक मे गमन करने लगता है ये मुक्त इलेक्ट्रॉन विधुत का संचालन करते है इलेक्ट्रॉन के ऋणावेशित होने के कारण इसे n - टाइप अर्द्धचालक कहते है 


p - टाइप अर्द्धचालक :-

जब किसी अचालक ठोस पदार्थ मे उससे कम संयोजी इलेक्ट्रॉन वाले परमाणुओ को मिलाया जाता है तो उसमे इलेक्ट्रॉन मुक्त हो जाते है और विधुत चालन का अल्प गुण आ जाता है इस प्रकार निर्मित अर्द्धचालक को p - टाइप अर्द्धचालक कहते है। 
  • इसे इलेक्ट्रॉन न्यून अशुद्वियाँ भी कहा जाता है 
उदाहरण :-

जब शुद्व सिलिकन मे अल्प मात्रा मे बोरॉन ( B ) को मिलाया जाता है तो सिलिकन के केवल तीन संयोजी इलेक्ट्रॉन बोरॉन के तीन संयोजी इलेक्ट्रॉन के साथ बंधन बनाने मे शामिल होते है चूकि सिलिकन के पास चार संयोजी इलेक्ट्रॉन होते है इसलिए सहसंयोजन बंधन बनाने के बजाए छिद्र रिक्तियाँ बना सकते है जो विधुत चालन मे सहायक होते है और ये p - टाइप अर्द्धचालक बना लेते है। 

  • n एंव p टाइप अर्द्धचालक के संयोजन का उपयोग ट्रांजिस्टरो के निर्माण मे किया जाता है। 

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