Manish Sharma

दर्पण क्या है? यह कितने प्रकार के होते है?

 दर्पण ( Mirror )

वह चिकनी और चमकिली सतह जिससे प्रकाश की किरणे निश्चित नियम का पालन करते हुए परावर्तित हो जाते है तथा जिसका कम से कम एक भाग रज्जीत( रंगा ) हो उसे दर्पण कहते है। 

परावर्तक सतह के आधार पर दर्पण को तीन भागो मे बाटा गया है :-

  1. समतल दर्पण ( Plane mirror )
  2. गोलीय दर्पण ( Spherical mirror )
  3. परवलयीक दर्पण ( Farabolic mirror ) 
समतल दर्पण :-

जिस दर्पण कि परावर्तक सतह समतल होती है उसे समतल दर्पण कहते है। 

समतल दर्पण की विशेषताएँ :-
  • इसमे बने प्रतिबिंब का आकार वस्तु के आकार के बराबर होता है
  • इसमे बना प्रतिबिंब काल्पनिक तथा सीधा होता है 
  • इसकी फोकस दूरी हमेशा अनंत होती है 
  • इस दर्पण के सामने जितनी दुरी पर वस्तु रखी जाती है उतनी ही दुरी पर दर्पण के पीछे वस्तु का प्रतिबिंब बनता है 
Note :-

यदि किसी समतल दर्पण पर कोई किरण आपतित होकर परावर्तित हो जाती है तब यदि समतल दर्पण को ɸ कोण से घुमा दिया जाए तो परावर्तित किरण 2ɸ कोण से घूम जाता है। 

गोलीय दर्पण ( Spherical mirror ) :-

जिस दर्पण का परावर्तक सतह खोखले गोले का एक भाग होता है उसे गोलीय दर्पण कहते है। 

गोलीय दर्पण दो प्रकार के होते है :-
  1. अवतल दर्पण ( Concave mirror )
  2. उत्तल दर्पण ( Convex mirror )
अवतल दर्पण :-

जिस गोलीय दर्पण का परावर्तक सतह धसा होता है उसे अवतल दर्पण कहते है। 

अवतल दर्पण कि विशेषताएँ :-
  • इसका परावर्तक सतह केन्द्र की ओर होता है 
  • इस दर्पण मे वास्तविक तथा काल्पनिक दोनो प्रकार के प्रतिबिंब बनते है 
  • इसमे किसी वस्तु का छोटा - बड़ा या बराबर प्रतिबिंब बनता है 
  • इसका फोकस वास्तविक होता है 
  • इसका फोकस दुरी ऋणात्मक होता है 
उत्तल दर्पण :-

जिस गोलीय दर्पण का परावर्तक सतह उभरा होता है उसे उत्तल दर्पण कहते है। 

उत्तल दर्पण की विशेषताएँ :-
  • इसका परावर्तक सतह केन्द्र के विपरीत होता है 
  • इस दर्पण मे केवल काल्पनिक सीधा प्रतिबिंब बनता है 
  • इसका फोकस काल्पनिक होता है 
  • इसका फोकस दुरी धनात्मक होता है 
  • इसमे हमेशा वस्तु से छोटा प्रतिबिंब बनता है 
अवतल दर्पण का उपयोग :-

अवतल दर्पण का उपयोग निम्नलिखित है :-
  1. हजामति दर्पण के रूप मे 
  2. सोलर कुकर मे 
  3. गाड़ियो के हेडलाइट, टॉर्च इत्यादि मे परावर्तक सतह के रूप मे 
  4. खगोलीय दूरबीन मे 
  5. डॉक्टरो द्वारा रोगियो के गले , नाक , कान इत्यादि जॉंच मे 
उत्तल दर्पण का उपयोग :-

उत्तल दर्पण का उपयोग निम्नलिखित है 
  1. गाड़ियो के साइड मिलर या पिष्टदर्शी दर्पण के रूप मे 
  2. गलियो मे स्टेट लाइट के परावर्तक सतह के रूप मे 
परवलयीक दर्पण :-

जिस दर्पण का परावर्तक सतह पूर्णतः गोलीय नही होता है उसे परवलयीक दर्पण कहते है। 

दर्पण से संबंधित मुख्य पद :-
  1. ध्रुव ( Pole )
  2. वक्रता केन्द्र ( Centre of curvature )
  3. वक्रता त्रिज्या ( Radius of curvature )
  4. प्रधान अक्ष या मुख्य अक्ष ( Principal axis )
  5. फोकस या नाभि ( Focus )
  6. फोकस दुरी या नाभ्यांतर ( Focal length )
  7. दर्पण का द्वारक ( Aperture of mirror )
  8. फोकस तल ( Focus floor )
ध्रुव :-

किसी दर्पण के सतह के मध्य बिन्दु को ध्रुव कहते है। 
  • इसे P से सूचित किया जाता है। 
वक्रता केन्द्र :-

दर्पण जिस खोखले गोले का बना होता है उस गोले के केन्द्र को वक्रता केन्द्र कहते है। 
  • इसे C से सूचित किया जाता है 
  • अवतल दर्पण मे वक्रता केन्द्र परावर्तक सतह के सामने होता है 
  • उत्तल दर्पण मे वक्रता केन्द्र परावर्तक सतह के पीछे होता है 
वक्रता त्रिज्या :-

दर्पण के ध्रुव और वक्रता केन्द्र के बीच की दुरी को वक्रता त्रिज्या कहते है। 
  • इसे R से सूचित किया जाता है 
प्रधान अक्ष या मुख्य अक्ष :-

किसी दर्पण के ध्रुव और वक्रता केन्द्र से होकर गुजरने वाली रेखा को प्रधान अक्ष कहते है 
  • यहाँ PCX प्रधान अक्ष है
फोकस या नाभि :-

प्रधान अक्ष के समांतर आ रही निकटवर्ती प्रकाश की किरणे परावर्तन के बाद प्रधान अक्ष के जिस बिंदु पर मिलती है या मिलती हुई प्रतीत होती है उसे उस दर्पण का फोकस कहते है। 
  • इसे F से सूचित किया जाता है 
फोकस दुरी :-

किसी दर्पण के फोकस और ध्रुव के बीच की दुरी को फोकस दुरी कहते है। 
  • इसे f से सूचित किया जाता है 
  • इसे नाभ्यांतर भी कहा जाता है 
दर्पण का द्वारक :-

किसी दर्पण की चौड़ाई को उस दर्पण का द्वारक कहते है।  

फोकस तल :-

फोकस से होकर गुजरने वाले लंबत तल को फोकस तल कहते है। 

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