सूखे से बचने के लिए कौन कौन से कदम उठाए जा सकते हैं?

 सूखा ( सुखाड़ )

सूखा लंबे समय तक अपर्याप्त वर्षा होने से समस्त जीव - जंतुओं का जीवनयापन दुष्कर हो जाता है कृषि उत्पादन घट जाता है और कभी - कभी पशुओं तक को पीने का पानी नही मिलता। इस स्थिति को सूखा कहते है अत्यधिक वाष्पीकरण से जलाशय भी सूख जाते है और भूमिगत जल का स्तर बहुत नीचे गिर जाता है। 


 

सूखे की व्याख्या :-

  1. मौसमविज्ञान के अनुसार लंबे समय तक अपर्याप्त वर्षा और इसके सामयिक एवं स्थानीय वितरण असंतुलित होने को सूखा कहते है। 
  2. कृषि - कार्यो को ध्यान में रखकर यदि मिट्टी में आर्द्रता की कमी इस स्तर तक हो जाए की फसले मुरझा जाए और 30 प्रतिशत से भी कम खेती में सिंचाई हो पाए तो इसे कानूनी रूप से सूखा माना जाता है। 
  3. जलविज्ञान के अनुसार जल - ग्रहण क्षेत्र जलाशय और झीलों में जल का स्तर वर्षा होने के बाद भी नीचे गिर जाए तो इसे सूखा कहते है। 
  4. जब परिस्थितिक तंत्र में जल की इतनी कमी हो जाए कि उत्पादकता घट जाए और इसके परिणामस्वरूप पारिस्थितिक तंत्र में तनाव उत्पन्न हो जाए या तंत्र क्षतिग्रस्त हो जाए तो इसे पारिस्थितिक सूखा कहते है। 
सूखे के दुष्परिणाम :- 

  1. फसलों के सूखने से उत्पादन कम होता है और खाद्य - समस्या उत्पन्न हो जाती है अधिकांश ग्रामीणों की जीविका फसलों पर ही निर्भर करती है फसलों के सूखने से उन्हें सबसे अधिक कष्ट होता है और भूखों मरने की स्थिति आ जाती है फसलों के सूखने से राष्ट्रीय स्तर पर आर्थिक हानि होती है इसे कृषि - अकाल कहते है। 
  2. फसलों के सूखने पर मवेशियों के लिए चारा उपलब्ध नहीं हो पाता है इसे तृण - अकाल कहते है। 
  3. वर्षा कम होने या अनावृष्टि होने अर्थात सूखा पड़ने से जल की उपलब्धता एक समस्या बन जाती है यहाँ तक की पेयजल की भी आपूर्ति नहीं हो पाती है तो इसे जल - अकाल कहते है। 
  4. यदि उपयुक्त तीनो परिस्थितियाँ उत्पन्न हो जाए तो त्रि-अकाल या महाअकाल उत्पन्न होता है जो विध्वंसक होता है। 
  5. सूखा - प्रभावित क्षेत्रों में मानव - उत्प्रभास , पशुपलायन और मवेशियों की मौत एक सामान्य घटना है। 
  6. जल की कमी से थोड़ा - बहुत उपलब्ध जल भी प्राय दूषित हो जाता है सफाई की कमी से और दूषित जल पीने से प्राय आंत्रशोथ , हैजा , पीलिया , हेपेटाइटिस और इसी तरह की कई बीमारियाँ फैल जाती है और महामारी का रूप ले लेती है। 
सूखे से बचाव के उपाय :-

सूखे से बचाव के उपाय निम्नलिखित है :-
  1. तात्कालिक या अल्पकालिक योजनाएँ 
  2. दीर्घकालिक योजनाएँ 
तात्कालिक या अल्पकालिक योजनाएँ :-

राष्ट्रीय या राज्य स्तर पर योजनाएँ बनाते समय सूखाग्रस्त क्षेत्रों की समस्याओं को ध्यान में रखना चाहिए आवश्यक होने पर 
  • पेयजल का सुरक्षित भंडारण एवं वितरण की समुचित व्यवस्था रहनी चाहिए। 
  • जल - संबंधी बीमारियों के लिए आवश्यक दवाओं और अन्य चिकित्सीय सहायता का प्रबंध होना चाहिए। 
  • पशुओं के चारे का भंडार होना चाहिए जिसे आवश्यकता पड़ने पर आसानी से वितरित किया जा सके। 
  • अधिक कठिन परिस्थिति में मवेशियों को सुरक्षित स्थानों पर पहुँचने का प्रबंध होना चाहिए जहाँ संचित जल उपलब्ध हो। 
  • आपदा प्रबंधन के अधीन अनाज का एक विशेष कोष रहना चाहिए जिससे खाद्य - समस्या से लोगों को मुक्ति मिल सके। 
दीर्घकालिक योजनाएँ :-

राष्ट्रीय स्तर पर कुछ योजनाएँ दीर्घकालीन समस्या को दृष्टि में रखकर बनानी चाहिए जैसे - 
  • भूमिगत जल के भंडार का पता लगाया जाना चाहिए इस जल को नलकूपों द्वारा खींचकर सिंचाई या पीने के लिए उपयोग किया जा सकता है। 
  • जल - प्रचून क्षेत्रों से जल आभाव वाले क्षेत्रों में पहुचाने के लिए नहर या पाइपलाइन का प्रबंध रहना चाहिए। 
  • उपग्रहों की सहायता से भूमिगत जल की संभावना का पता लगाना चाहिए। 
  • सड़को के किनारो पर और खाली पड़ी जमीन पर पर्याप्त मात्रा में वनरोपण को प्रोत्साहित करना जिससे हरियाली में वृद्धि हो और वर्षा की संभावना बढ़ सके। 
  • नदियों को परस्पर जोड़ना जिससे अधिक जल को ऐसे क्षेत्र में भेजा जा सके जहाँ इसकी आवश्यकता है इससे बाढ़ और सुखाड़ दोनों को कम किया जा सकता है चुकी जब उत्तर भारत में बाढ़ आती है तब दक्षिणी में जल आभाव रहता है और जब दक्षिण में जोड़ो की वर्षा होती है तब उत्तरी भाग में वर्षा नहीं होती। इसलिए नदियों को जोड़ने से पूरे देश की समस्या दूर की जा सकती है हिमालय की सदानीरा नदियों का जल मध्य , पश्चिम और दक्षिण क्षेत्र में सिंचाई के लिए सालोभर उपलब्ध हो सकता है। 

भारत में कोयला के उत्पादन एवं वितरण का विवरण लिखिए

कोयले का प्रादेशिक वितरण 

कोयले का प्रादेशिक वितरण निम्नलिखित है :-

  1. गोंडवानाकाल का कोयला - भंडार 
  2. तृतीययुगीन कोयला - भंडार 
  3. लिग्नाइट कोयला - भंडार 
गोंडवानाकाल का कोयला - भंडार :-

झारखंड:-
  • यहाँ देश के कुल कोयला - भंडार का 27 प्रतिशत सुरक्षित है। 
  • राष्ट्रीय कोयला - उत्पादन में इसकी भागीदारी 20 प्रतिशत है। 
  • दामोदरघाटी का यह कोयला धातु - निष्कासन के लिए महत्वपूर्ण है इस्पात बनाने की वात्या - भट्टी में प्रयुक्त होनेवाला कोक इसी कोकिंग कोल से बनाया जाता है यह मुख्यतः गिरिडीह में पाया जाता है।


 
  • 1970 तक देश के इस्पात उधोग में इस क्षेत्र के कोयले की भागीदारी अधिक थी और राष्ट्रीय उत्पादन का 47 प्रतिशत यहाँ से प्राप्त किया जाता है परंतु अनेक उधोगों में आयातित कोक के उपयोग तथा देश के अन्य क्षेत्रों के कोयले के उपयोग से अब उत्पादन घट रहा है 2011 - 12 में देश के कुल कोयला - उत्पादन का मात्र 20 प्रतिशत झारखंड से प्राप्त हुआ था। 
  • कोयले का प्रमुख उत्पादन क्षेत्र झारखंड के ललमटिया , झरिया , बोकारो , गिरिडीह , कर्णपुरा और रामगढ़ है। 
  • गिरिडीह का कोयला कोकिंग कोल किस्म का है शेष भागों में कोयला प्राय बिटुमेनी किस्म का है। 
  • पश्चिम बंगाल के रानीगंज कोयला क्षेत्र का कुछ भाग झारखंड में पड़ता है यह कोयला प्राय एथ्रासाइट कोयला है जो सबसे अच्छा कोयला है। 


छत्तीसगढ़ :-
  • यह देश के कोयले के उत्पादन में प्रथम स्थान पर है यहाँ से देश का 21 प्रतिशत उत्पादन प्राप्त होता है। 
  • सुरक्षित भंडार की दृष्टि से इसका स्थान तीसरा है यहाँ देश का 17 प्रतिशत सुरक्षित भंडार है। 
  • उत्तरी छत्तीसगढ़ के क्षेत्र - चिरमिरी , कुरसिया , विश्रामपुर , झिलमिली , सोनहाट , लखनपुर इत्यादि दक्षिणी छत्तीसगढ़ के क्षेत्र - हसदो-रामपुर एवं रायगढ़ में माँड़।

ओडिशा :-
  • यहाँ देश का 24 प्रतिशत कोयले का सुरक्षित भंडार है। 
  • सकल उत्पादन में इसकी भागीदारी 19.5 प्रतिशत है। 
  • यहाँ का कोयला उच्च कोटि का न होने के कारण वाष्प और गैस बनाने में प्रयोग किया जाता है। 
  • प्रमुख उत्पादन क्षेत्र तालचर है। 
महाराष्ट्र :-
  • यहाँ देश का मात्र 3.7 प्रतिशत कोयला सुरक्षित है। 
  • सकल उत्पादन में इसकी भागीदारी 7.3 प्रतिशत से भी अधिक है। 
  • इसके कोयला क्षेत्र चांदा - वर्धा , कांपटी और बंदेर है। 
मध्य प्रदेश :-
  • मध्य प्रदेश से छत्तीसगढ़ के अलग होने से प्रमुख कोयला - क्षेत्र छत्तीसगढ़ में चला गया है अब मध्य प्रदेश में देश का मात्र 8.3 प्रतिशत सुरक्षित भंडार रह गया है। 
  • पूर्वोत्तर भाग के कोयला क्षेत्र  सिंगरौली , सोहागपुर , उमरिया और जोहिल्ला तथा सतपुरा क्षेत्र में पेंचघाटी तथा तवाघाटी , पथखेड़ा और मोहपानी है। 
पश्चिम बंगाल :-
  • देश के कोयले के सुरक्षित भंडार की दृष्टि से इसका स्थान चौथा है। 
  • कोयला - उत्पादन में इसका स्थान देश में सातवाँ है। 
  • मुख्य क्षेत्र रानीगंज है जिसका कुछ भाग झारखंड में पड़ता है दूसरा क्षेत्र दार्जिलिंग है कोयले की सर्वोत्तम किस्म एथ्रासाइट के कारण यह अत्यंत महत्तपूर्ण क्षेत्र है। 
तृतीययुगीन कोयला - भंडार :-

टर्शियरी काल में बनने के कारण इस कोयले के बनने में कम समय लगा है इसीलिए इसकी गुणवत्ता कम है इसके प्रमुख क्षेत्र निम्नलिखित है :-
  1. मेघालय - दारगिरी , चेरापूँजी , लेतरीग्यु , माओलोंग और लंगरिन। 
  2. ऊपरी असम - माकुम , जयपुर , नजीरा इत्यादि। 
  3. अरुणाचल प्रदेश - नामचिक और नामरुक। 
  4. जम्मू - कश्मीर - कालाकोट ( यह कोयला हिमालय के निर्माण काल में हुए भू - संरचन और भू - धसान से दबकर चूर - चूर हो गया है। )
  5. नगालैंड , उत्तर प्रदेश और हिमाचल प्रदेश में भी कहीं - कहीं कोयला का सुरक्षित भंडार है। 
लिग्नाइट कोयला - भंडार :-

  • निम्न कोटि के इस कोयले का देश में 4196 करोड़ टन का सुरक्षित भंडार है। 
  • 81 प्रतिशत , अर्थात 3388 करोड़ टन भंडार केवल तमिलनाडु में है इसका खनन नेवेली लिग्नाइट कॉरपोरेशन लिमिटेड करता है। 
  • 19 प्रतिशत लिग्नाइट - भंडार छिटपुट रूप से राजस्थान , गुजरात , केरल एवं जम्मू कश्मीर में भी है। 
  • भारतीय खान ब्यूरो की रिपोर्ट के अनुसार 1 अप्रैल 2012 तक राजस्थान में 490.47 करोड़ टन , गुजरात में 272.2 करोड़ टन , पुदुचेरी में 41.6 करोड़ टन , जम्मू - कश्मीर में 2.7 करोड़ टन और केरल में 0.9 करोड़ टन लिग्नाइट कोयला - भंडार सुरक्षित है।



 
स्वतंत्रता - प्राप्ति के बाद भारत की सभी कोयला खानों का राष्ट्रीयकरण कर श्रमिकों को शोषित होने से बचाने के उपाय किए जा रहे है साथ ही खुदाई वैज्ञानिक ढंग से की जाने लगी है और बरबादी से बचाते हुए संरक्षण पर जोर दिया जा रहा है अब कोयला के प्रमुख क्षेत्र इस प्रकार है 1. रानीगंज जहाँ 1774 से ही कोयला - उत्पादन हो रहा है , 2. झाड़िया 3. पूर्वी बोकारो तथा पश्चिमी बोकारो , 4. पेंचघाटी तथा तवाघाटी , 5. सिंगरौली , 6. चाँदा - वर्धा , 7. तालचर , 8. गोदावरीघाटी। इन कोयला खानों में भूमिगत जल की समस्या गहराती जा रही है जल निकालने के काम में कठिनाई और खर्च अधिक हो रही है। 

उत्पादन :-

1951 में कोयले का उत्पादन 3.5 करोड़ टन था जो 2000 में 30 करोड़ टन पहुँच गया था 2007 और 2009 में क्रमश 45.6 और 48.8 करोड़ टन कोयले का उत्पादन हुआ। 2013 में 55.6 करोड़ टन कोयले का उत्पादन हुआ तथा 2014 में 56.6 करोड़ टन। सारे संसार के कोयला - उत्पादन देशो में भारत का स्थान तीसरा है भारत सरकार ने अब कोयले का उत्पादन अपने हाथ में ले लिया है और सार्वजनिक क्षेत्र में राष्ट्रीय कोयला विकास निगम की स्थापना की है यह हमारे देश में कोयला - क्षेत्रों का तेजी से विकाश कर रहा है और कोयले की बरबादी को रोकने के लिए प्रयत्नशील है। 

उपयोग और व्यापार :-

कोयला के विविध उपयोग है दो - तिहाई कोयले का उपयोग विधुत उत्पन्न करने में होता है शक्ति के साधन के अतिरिक्त यह लोहा - इस्पात तैयार करने , सीमेंट बनाने और रसायन उधोग में काम आता है इसका उपयोग तरह - तरह के समान बनाने में भी किया जाता है जैसे अलकतरा , रंग - रोगन , सुगंधित तेल , कृत्रिम रबर , कृत्रिम चीनी ( सेकरीन ) , कृत्रिम धागे ( नाइलॉन ) , फिनायल , कीटनाशक दवाए , युद्ध के बहुतेरे सामान आदि। चूल्हा जलाने से लेकर समुंद्री जहाज चलाने में भी इसका उपयोग किया जाता है अपनी बढ़ती उपयोगिता के कारण ही यह काला हीरा कहलाता है। भारत अपने पड़ोसी देशों को उत्पादन का 5 % निर्यात करता है मुख्यतः बांग्लादेश , म्यांमार , श्रीलंका , सिंगापुर और जापान को कोलकाता इसका प्रमुख निर्यातक पत्तन है। 

भूमि-क्षेत्र का ह्रास के कारण क्या है और इसे रोकने का उपाय बताए।

भूमि - क्षेत्र का ह्रास  

प्रतिवर्ष देश की जनसंख्या बढ़ जाने के कारण प्रतिव्यक्ति भूमि ( खासकर कृषियोग्य भूमि ) की कमी परती जा रही है कल - कारखानों के बढ़ते तथा नगरों के विकास से भी भूमि का ह्रास हुआ है भूमि के बढ़ते ह्रास को रोकना आवश्यक है अधिक सिंचाई से भी समस्या उत्पन्न हो रही है जल - जमाव के कारण निचली भूमि बेकार हो जाती है राजस्थान के बाद दूसरा समस्याग्रस्त राज्य गुजरात है जहाँ नमक के प्रभाव से ऊंची भूमि खेती लायक नहीं रह पाती। इसके बाद हिमाचल प्रदेश है जहाँ बर्फ जमी रहने के कारण राज्य का चौथाई भाग खेती करने लायक नहीं रहता है मध्य प्रदेश , राजस्थान , उत्तर प्रदेश और महाराष्ट्र में अनेक छोटे - छोटे टुकड़े ऊसर है जहाँ खेती करना लाभप्रद नहीं रहता है भूमि के कटाव से भी भूमि क्षेत्र घट रहा है पहाड़ी ढालो पर वर्षा जल से , शुष्क भागो में वायु अपरदन तथा अन्य मानवीय कारणों से भूमि का ह्रास हो रहा है। 


भूमि निम्नीकरण :-

उपग्रह और भू-सर्वेक्षण विभाग के चित्रों और सर्वेक्षणों से मुख्य चार प्रकार से भूमि के गुणों में कमी , अर्थात निम्नीकरण का अनुभव किया गया है ये कारण है - लवणता , जल - जमाव , वनों के बीच खाली जमीन और बर्फीली जमीन।  

मिट्टी का कटाव - एक गंभीर समस्या :-

वर्ल्ड वाइड फंड फॉर नेचर का कहना है कि भारत में प्राय 13 करोड़ हेक्टेयर भूमि का निम्नीकरण हुआ है वनों में लाखों - करोड़ो लोग भी रहते है जिनका जीवन इन्ही वनों पर निर्भर है आवास , सड़क एवं उधोगों में भी वन क्षेत्र तथा कृषि भूमि का उपयोग अधिक हो रहा है अतः संभावित और बंजर भूमि पर वृक्षारोपण अत्यावश्यक है।

 

 भारत की करीब 13 करोड़ हेक्टेयर भूमि निम्नीकृत है इसमें लगभग 28 प्रतिशत निम्नीकृत भूमि वनो के अंतर्गत है 56 प्रतिशत क्षेत्र जल अपरदित है और शेष भाग क्षारीय तथा लवणीय हो गया है कैल्शियम तथा मैग्नीशियम के लवण इसे क्षारीय बनाते है कुछ लवण इसमें अम्लीयता उत्पन्न करते है खनिजों के दोहन तथा पशुचारण से मिट्टी का बड़ा भाग उर्वरता खो देता है सीमेंट के उधोगों के पास की मिट्टी भी उपजाऊ नहीं रह पाती , वर्तमान में अनेक उधोगों के कचरे से भी भूमि प्रदूषित हो रही है। 


भूमि ह्रास रोकने के उपाय :-

  1. उपजाऊ भूमि पर कल - कारखाने या सरकारी कार्यालय न स्थापित किए जाए। 
  2. जलमग्न भूमि का उद्धार किया जाए और उसका उचित उपयोग किया जाए। 
  3. जनसंख्या - वृद्धि की दर में कमी लाई जाए। 
  4. पहाड़ी भागों में सीढ़ीनुमा खेत बनाकर या पेड़ लगाकर भूमि - क्षरण रोका जाए। 
  5. मरुस्थल के सीमावर्ती क्षेत्र में झाड़िया लगाकर मरुभूमि के प्रसार को रोका जाए ,
  6. कारखानों के आसपास औधोगिक कचरों को यत्र - तत्र फैलाने से रोका जाए। 
  7. देश को प्रौद्योगिकी में धनी बनाया जाए प्रौद्योगिकी के विकास से भूमि - क्षेत्र का ह्रास भी रोका जा सकता है। 
  8. प्राकृतिक आपदाओं से देश की रक्षा की जाए इसमें सरकार के सहयोग की आवश्यकता है। 
  9. पर्वतीय भागों में रिक्त स्थानों पर वृक्ष लगाए जाए पेड़ो का काटना रोका जाए। 
  10. वायु अपरदन को रोकने के लिए पशुचारण पर प्रतिबंध लगना चाहिए विशेषतः उन क्षेत्रों में जहाँ जानवरो के खुरों से उखड़ी मिट्टी के उड़ जाने की संभावना अधिक हो। 
  11. खनन - क्षेत्रों में अयस्क का शोधन खदान पर ही हो तथा जहाँ खनिज निकालने का काम पूरा हो जाए वहाँ भूमि को समतल कर दिया जाए। 
  12. रेगिस्तानों में कटीली झाड़िया लगाने से वायु अपरदन को रोका जा सकता है। 

काली मिट्टी और लाल मिट्टी की विशेषता को लिखे।

काली मिट्टी  

काली मिट्टी का निर्माण दक्षिणी क्षेत्र के लावावाले ( बेसाल्ट क्षेत्र ) भागों में हुआ है जहाँ अर्द्धशुष्क भागो में इसका रंग काला पाया जाता है कपास और गन्ने के उत्पादन के लिए यह मिट्टी सर्वोत्तम है। 

  • भारत में काली मिट्टी वाली भूमि का क्षेत्रफल लगभग 6.4 करोड़ हेक्टेयर है। 
  • महाराष्ट्र का बड़ा भाग , गुजरात का सौराष्ट्र , मध्य प्रदेश , छत्तीसगढ़ , कर्नाटक , तेलंगाना और आंध्र प्रदेश में कृष्णा और गोदावरी घाटी , तमिलनाडु , उत्तर प्रदेश , राजस्थान के मालवा खंड में काली मिट्टी के क्षेत्र पाए जाते है। 
  • लोहा ऐलुमिनियमयुक्त पदार्थ टाइटेनोमेग्नेटाइट के साथ जीवांश तथा ऐलुमिनियम के सिलिकेट मिलने के कारण इसका रंग काला होता है। 
  • इसमें पोटाश , चूना , ऐलुमिनियम , कैल्सियम और मैग्नीशियम के कार्बोनेट तो प्रचून मात्रा में होते है परंतु नाइट्रोजन , फॉस्फोरस और जैविक पदार्थो की कमी होती है। 
  • भीगने पर यह मिट्टी चिपचिपी हो जाती है परंतु सूखने पर इसमें गहरी दरारे परती है इससे हवा का नाइट्रोजन इसे प्राप्त होता है। 
  • अत्यंत धूप होने पर भी इसके भीतर नमी विधमान रह सकती है। 
  • यह मिट्टी बहुत उर्वर होती है इसमें सभी प्रकार के खाद्यान्न , कपास , तेलहन , सूर्यमुखी , गन्ना एवं विभिन्न प्रकार की सब्जियाँ , खट्टे फल , तंबाकू का उत्पादन अच्छी तरह होती है 
  • अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में खेती के लिए यह अच्छी मिट्टी है सावधानी यही रखनी चाहिए कि वर्षा की पहली फुहार के बाद ही इसे जोत दिया जाए , अन्यथा पानी अधिक होने पर इसकी जुताई कठिन हो जाती है इसी प्रकार , बहुत सूख जाने पर भी इसकी जुताई कठिन है। 
  • कुछ स्थलों पर इसे रेगड़ भी कहते है। 

काली मिट्टी 

लाल मिट्टी 

लाल मिट्टी का निर्माण लोहे और मैग्नीशियम के खनिज से युक्त रवेदार और रूपांतरित आग्नेय चट्टानों के द्वारा होता है इसका रंग लोहे की उपस्थिति के कारण लाल होता है अधिक नम होने पर इसका रंग पीला भी हो जाता है। 
  • इसका pH मान 6.6 और 8.0 के बीच रहता है। 
  • भारत में लाल - पीली मिट्टी का क्षेत्रफल सर्वाधिक लगभग 7.2 करोड़ हेक्टेयर है। 
  • यह मिट्टी दक्कन पठार , पूर्वी और दक्षिणी भागों के 100 सेंटीमीटर से कम वर्षा के क्षेत्रों में पाई जाती है इसका विस्तार पूर्व में राजमहल का पहाड़ी क्षेत्र , उत्तर में झाँसी , पश्चिम में कच्छ तथा पश्चिमी घाट की पर्वतीय ढालो तक है। 
  • इसकी बनावट हलकी , रन्ध्रमय और मुलायम है। 
  • इसमें खनिजों की मात्रा कम है कार्बोनेटों का आभाव है साथ ही नाइट्रोजन और फॉस्फोरस भी नही होता। जीवांश तथा चूना भी कम मात्रा में उपलब्ध है। 
  • तमिलनाडु के प्राय दो तिहाई भाग में लाल मिट्टी पाई जाती है नम होने पर इसका रंग पीला दिखाई पड़ता है। 
  • वैसे तो इस मिट्टी में सभी फसलें उगाई जा सकती है परंतु धान , रागी , तंबाकू ,आलू , मूँगफली और सब्जियों का उत्पादन अधिक होता है निचले भागो में गन्ने की खेती भी की जा सकती है। 
  • इस मिट्टी में हवा मिली होती है अतः बुआई के बाद सिंचाई करना आवश्यक है जिससे बीच अंकुरित हो सके।

लाल मिट्टी 

  

भारत में कृषि का महत्त्व क्या है ?

भारत में कृषि का महत्त्व  

  1. भारत की 53.5 प्रतिशत आबादी के लिए रोजगार के अवसर कृषि - क्रियाकलापों से ही उपलब्ध होते है। 
  2. यधपि देश के सकल राष्ट्रिय उत्पादन में कृषि का योगदान 13.7 प्रतिशत रह गया है तथापि ऐसा कृषि - उत्पादन की कमी से नही , वरन उधोगों के विकाश के कारण हुआ है वस्तुतः आज भी कृषि ही देश की अर्थव्यवस्था की रीढ़ है। 
  3. कृषि उत्पादन से ही देश की विपुल जनसंख्या को भरपेट भोजन उपलब्ध हो पाता है यदि खाद्यान्न - उत्पादन में देश आत्मनिर्भर नही रहता , तो उधोगों की सारी कमाई अन्न खरीदने में लग जाती। 
  4. अनेक उधोगो के लिए कच्चे माल की आपूर्ति कृषि उत्पादनों से ही प्राप्त होती है सूति वस्त्र उधोग को कपास से , चीनी उधोग को गन्ने से , जूट उधोग को जूट के पौधो से कच्चा माल प्राप्त होता है वही जैम , जेली , स्कवॉश इत्यादि के लिए कच्चा माल फलो से प्राप्त होता है रेशम उधोग भी वस्तुतः शहतूत , मलबरी इत्यादि पौधो की पतियों के उपयोग से विकसित हो पाता है कागज उधोग का आधार भी कृषि उत्पाद ही प्रदान करते है इसी प्रकार के अनेक उधोग कृषि पर आधारित है। 
  5. भारत के विभिन्न क्षेत्रों के जलवायु में विभिन्नता के कारण यहाँ कृषि उत्पादो में भी विभिन्नता पाई जाती है विशिष्ट क्षेत्र विशेष प्रकार की फसलों के लिए अत्यधिक अनुकूल पाए जाते है कृषि की इस विविधता के कारण पूरे विश्व में भारत का एक महत्वपूर्ण स्थान है सुपारी , नारियल , फल , दाल , चाय , जूट और दूध के उत्पादन तथा पशुधन में भारत विश्व में पहले स्थान पर है गेहूँ , मूँगफली , मछली और सब्जियों के उत्पादन में इसका स्थान दूसरा है चावल तथा तंबाकू के उत्पादन में यह विश्व में तीसरे स्थान पर है कपास - उत्पादन में चीन , अमेरिका और पाकिस्तान के बाद यह सबसे बड़ा उत्पादक देश है। 
  6. अनेक कृषि उत्पाद या उनसे संबंधित या प्रसंस्कृत उत्पाद निर्यात किए जाते है जिनसे विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। 
  7. कृषि से अनेक उधोगो को बाजार भी प्राप्त होता है ट्रैक्टर , ट्रोली , हारवेस्टर , थ्रेसर , बिजली के मोटर , उर्वरक कीटनाशक इत्यादि के प्रयोग से कृषि द्वारा इनके उधोगो को प्रश्रय मिलता है।


 

कृषि भूमि का उपयोग :-

भारत के कुल भूभाग का आधा से भी कम प्राय 43 प्रतिशत भाग मैदानी है तथा शेष भाग में पहाड़ और पठार है फिर भी कुल मिलाकर प्राय 62 प्रतिशत भूमि पर कृषि की जाती है 15 प्रतिशत क्षेत्र में सिंचाई की सुविधा के कारण अनेक फसले उगाकर गहन कृषि की जाती है परंतु शेष भाग में वर्षाधुन कृषि होती है कृषि - भूमि के उपयोग के संबंध में भू - राजस्व विभाग और भारतीय सर्वेक्षण विभाग से आंकड़े प्राप्त होते है जिसमे राजस्व विभाग के आंकड़े कम होते है क्योंकि कई भागो में कर - सीमा निर्धारण के कारण उनका उल्लेख नही हो पाता है। 

2008 - 09 में भूमि उपयोग संवर्ग के आंकड़े :- 

  1. वन क्षेत्र      -------------    22.78 प्रतिशत 
  2. बंजर और व्यर्थ भूमि   -----------   8.61 प्रतिशत  
  3. अकृष्य कार्यो में प्रयुक्त भूमि    --------   5.57 प्रतिशत 
  4. स्थायी चरागाह और घास क्षेत्र    --------  3.38 प्रतिशत 
  5. बाग - बगीचे   ---------     1.11 प्रतिशत 
  6. कृषि योग्य व्यर्थ भूमि     ----------     4.17 प्रतिशत 
  7. पुरातन परती भूमि    ---------    3.37 प्रतिशत 
  8. वर्तमान परती भूमि    ----------   4.76 प्रतिशत 
  9. निवल बोई भूमि   ---------   46.24 प्रतिशत 
भारत में भूमि - उपयोग में परिवर्तन :-

समय के साथ आर्थिक क्रियाकलापों में परिवर्तन होता रहता है इसका सीधा प्रभाव भूमि - उपयोग पर भी पड़ता है क्योंकि कुल भूमि का क्षेत्रफल तो सीमित है और सभी क्रियाकलापों के लिए स्थान का आबंटन इसी में से किया जाता है। 

भारत में भूमि - उपयोग में परिवर्तन के कारण :-
  1. जनसंख्या में वृद्धि 
  2. उधोगो का विकास  
जनसंख्या में वृद्धि :-

देश की जनसंख्या में वृद्धि स्वाभाविक है और बढ़ती आबादी के लिए निवास और बस्तियों के निर्माण में भूमि के कुछ भाग का उपयोग हो जाता है। 

उधोगो का विकास :-

उधोगो के विकास से उनकी स्थापना तथा परिवहन के लिए सड़क , रेलमार्ग बनाने तथा औधोगिक बस्तियों के निर्माण में कुछ कृषि - भूमि का उपयोग होता है 

होआ होआ आंदोलन क्या है ?

होआ होआ आंदोलन  

होआ होआ आंदोलन 1939 में आरंभ हुआ। इसका केंद्र मेकोंग डेल्टा था वहाँ इसका प्रभाव सबसे अधिक था इस आंदोलन की उत्पति उपनिवेशवाद विरोधी विचारो से हुई थी होआ होआ आंदोलन का प्रणेता हुइन्ह फू सो था वह लौकिक शक्तियों और जादू -टोना में विश्वास रखता था वह जनकल्याण - संबंधी कार्य करता था और समाजसुधारक भी था उसने फिजूलखर्ची , शराबखोरी और बाल - कन्याओं की बिक्री की प्रथा का विरोध किया वह गरीबों और निः सहाय लोगों की मदद भी करता था इससे समाज में उसका व्यापक प्रभाव था उसके समर्थनों की संख्या बहुत बड़ी थी हुइन्ह फू सो के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए सरकार ने कठोर दमनात्मक कारवाई की। उसे पागल घोषित कर जेल में कैद कर दिया गया। फ्रांसीसी व्यंग्यपूर्वक उसे पागल बोंजे कहने लगे। जेल में डालने पर भी उसका प्रभाव कम नही हुआ। यहाँ तक कि जिस डॉक्टर को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि वह हुइन्ह फू सो को पागल घोषित करे वह भी बाद में उसका अनुयायी बन गया। आगे चलकर 1941 में फ्रांसीसी डॉक्टरों ने स्वीकार कर लिया कि वह पागल नही है तब सरकार ने उसे वियतनाम से निर्वासित कर लाओस भेज दिया। उसके अनेक समर्थनों को यातना शिविरों में डाल दिया गया। इस प्रकार सरकार ने होआ होआ आंदोलन को दबा दिया। होआ होआ जैसे आंदोलन राष्ट्रवाद की मुख्य धारा से जुड़ गए। राजनितिक दल इनका लाभ उठाने का प्रयास तो करते थे तथापि वे इन आंदोलनों के अनेक रीति - रिवाजो का समर्थन नही करते थे। वियतनाम के कुलीन वर्ग पर कन्फ्यूशियसवाद का गहरा प्रभाव था लेकिन किसानों के बीच बहुतेरी धार्मिक मान्यताएँ प्रचलित थी इनमे बौद्ध धर्म और स्थानीय परंपराओं का समन्वय था वे ईश्वर के अस्तित्त्व में भी विश्वास रखते थे अनेको का विश्वास था कि उन लोगो ने ईश्वरो की आभा के दर्शन किए थे इन समन्वयवादी धर्मो में से कुछ तो औपनिवेशिक शासन के समर्थन थे तो कुछ इसके विरोधी। विरोधी फ्रांसीसी के विरूद्ध चलाए जानेवाली आंदोलन का समर्थन करते थे होआ होआ आंदोलन भी उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन था। 

भारत में औधोगिकीकरण के छह प्रभावों को लिखे ?

भारत में औधोगिकीकरण का प्रभाव

औधोगिकीकरण का भारत पर व्यापक प्रभाव पड़ा। जिस प्रकार औधोगिकीकरण ने ब्रिटेन के श्रमिकों की आजीविका , वहाँ के आर्थिक , सामाजिक , सांस्कृतिक एवं राजनितिक जीवन को प्रभावित किया वैसी ही स्थिति भारत में हुई यहाँ के आर्थिक और सामाजिक जीवन में महत्वपूर्ण परिवर्तन आए औधोगिकीकरण के प्रभाव को निम्नलिखित बिंदुओं के अंतर्गत समझा जा सकता है। 

उधोगो का विकाश :-

 औधोगिकीकरण और कारख़ानेदारी प्रथा के विकाश के पूर्व भारत में उत्पादन का कार्य छोटे गृह उधोगो में होता था इनमे कार्यरत शिल्पी आकर्षण और कलात्मक सामान बनाते है कारखानों और मिलो की स्थापना से इनका महत्त्व समाप्त हो गया। अब उत्पादन कारखानों में होने लगा। कपड़ा बुनने , सूत कातने की मिले स्थापित हुई मशीनों का व्यवहार कर कपड़ा , लोहा एवं इस्पात , कोयला , सीमेंट , चीनी , कागज , शीसा और अन्य उधोग स्थापित हुए जिनमे बड़े स्तर पर उत्पादन हुआ इस प्रकार औधोगिकीकरण से भारतीय उधोगो का विकाश हुआ। 

नगरीकरण को बढ़ावा :-

औधोगिकीकरण ने नगरीकरण को बढ़ावा दिया। औधोगिक केंद्र नगर के रूप में परिवर्तित हुए। वहाँ बाहर के लोगो के आकर बसने से जनसंख्या में वृद्धि हुई। आवागमन के साधनो का विकाश हुआ तथा बाजार बसे। वे स्थान नगर के रूप में विकसित हुए। औधोगिकीकरण के कारण पुनारे नगरों , जैसे बंबई , कलकत्ता की समृद्धि में वृद्धि हुई तो बिहार में नए नगर भी विकसित हुए जैसे जमशेदपुर , बोकारो इत्यादि। 

कुटीर उधोगो की अवनति :-

कारखानों की स्थापना से परंपरागत लघु एवं कुटीर उधोगो का पतन हो गया। इसका एक मुख्य कारण था कारखानों में उत्पादित सामान सस्ते थे जबकि कुटीर उधोगो में उत्पादित सामान महगें होते थे इसलिए बाजार में इनकी माँग घट गई सरकारी नीतियों के कारण कुटीर उधोगो को कच्चा माल मिलना भी दुर्लभ हो गया। फसलतः ये बंदप्राय हो गए।

कृषि एवं उधोग का संतुलन नष्ट होना :- 

इंगलैंड में परंपरागत उधोगो का स्थान कारखानों ने लिया , लेकिन भारत में वैकल्पिक उधोगो का विकाश नहीं हो सका। अतः कुटीर उधोगो में संलग्न कारीगर एवं शिल्पी अपना व्यवसाय छोड़कर खेती में लग गए जिनके पास अपनी जमीन नहीं थी वे खेतिहर मजदूर बन गए बहुत याद में वे कारखानों और मिलो में काम करने लगे। इस प्रकार कृषि एवं उधोग का संतुलन नष्ट हो गया। 

सामाजिक विभाजन :- 

भारत में औधोगिकीकरण के विकाश के साथ ही नए - नए सामाजिक वर्गो का उदय और विकाश हुआ। कल कारखानों में निवेश करने वाले पूँजीपति बन गए। उत्पादन और वितरण पर इनका नियंत्रण स्थापित हुआ। दूसरा वर्ग कारखानों में कार्यरत श्रमिक वर्ग का था इनके श्रम का लाभ पूँजीपतियो ने उठाया। इन दोनों के अतिरिक्त मध्यम वर्ग या बुर्जुआ वर्ग का भी उदय हुआ। इस वर्ग ने पूँजीपतियो के शोषण का विरोध किया तथा श्रमिकों के हक में आवाज उठाई। राष्ट्रीय आंदोलन में इस वर्ग की प्रभावशाली भूमिका रही। इसने औपनिवेशिक शोषण की नीति का भी विरोध किया। 

स्लम - पद्धति का उदय :-

कारख़ानेदारी प्रथा के विकास ने स्लम - पद्धति को भी जन्म दिया शहरों में स्थित कारखानों में काम करने के लिए श्रमिक गॉंव - घर छोड़कर शहर में आकर बसने लगे। वहाँ उनके आवास की समुचित व्यवस्था नही थी उन्हें छोटे , अस्वास्थ्यकर , अस्थाई निवासो में रहना पड़ा। जैसे में बंबई के चॉल। कारखानों के इर्द - गिर्द मजदूरों की बस्तियाँ या स्लम बस गए। मजदूरों को इनमे नारकीय जीवन व्यतीत करना पड़ा। 

यूनानी स्वतंत्रता संग्राम के कारणों और परिणामों का उल्लेख करे।

 यूनान का स्वतंत्रता संग्राम 

यूनान प्राचीन और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध राष्ट्र था इसका अतीत गौरवमय था यहाँ की साहित्यिक , कलात्मक , दार्शनिक वैज्ञानिक एवं चिकित्सा - संबंधी उपलब्धियों से पूरा यूरोप प्रभावित हुआ था पुनजार्गरण काल में यूनानी सभ्यता - संस्कृति अनेक राष्टों के लिए प्रेरणादायक बन गई 15वी शताब्दी में यूनान ऑटोमन साम्राज्य के अंतर्गत आ गया इस साम्राज्य के अंतर्गत विभिन्न भाषा , धर्म और नस्ल के निवासी थे तुर्की ने ऑटोमन साम्राज्य के प्रति उनमें लगाव की भावना नहीं थी क्योंकि उन्हें तुर्की ने अपने साम्राज्य में आत्मसात करने का प्रयास नहीं किया था 18वी शताब्दी से तुर्की की शक्ति कमजोर पड़ने लगी। उसे यूरोप का मरीज कहा जाने लगा साम्राज्य की कमजोरी का लाभ उठाकर राष्ट्र्वादी तत्त्व सक्रिय हो गए 18वी शताब्दी के अंतिम चरण तक यूनान में राष्ट्र्वादी विचारधारा बलवती होने लगी 1789 की फ़्राँसीसी क्रांति नेपोलियन के युद्धों और वियना कांग्रेस के विरुद्ध आक्रोश ने इस विचारधारा को आगे बढ़ाया राष्ट्र्वादी भावना के विकाश में धर्म की प्रमुख भूमिका थी यूनानी , यूनानी चर्च के अनुयायी थे समान धार्मिक भावना के कारण उनमे जातीय एकता की अनुभूति हुई 18वी शताब्दी के अंत में यूनान में बौद्धिक आंदोलन भी हुआ कोरेइस नामक दार्शनिक ने यूनानी में राष्ट्रप्रेम की भावना का प्रचार किया अपने लेखो द्वारा उसने यूनानियों को उनकी प्राचीन सांस्कृतिक परंपरा के प्रति जागरूक रहने का संदेश दिया कान्सटेनटाइन रिगास नामक एक अन्य नेता ने गुप्त समाचारपत्रों का प्रकाशन कर यूनानियों में तुर्की से स्वतंत्र होने की भावना प्रज्वलित की। यूनानियों में स्वतंत्रता की भावना जगने का एक कारण यह भी था की तुर्की साम्राज्य में उनकी स्थिति अन्य लोगो से अच्छी थी उन्हें धार्मिक स्वतंत्रता थी प्रशासन में उन्हें उच्च पद प्राप्त थे तथा आर्थिक दृष्टि से वे समृद्ध थे यूनान में शक्तिशाली शिक्षित मध्यम वर्ग था जो राष्ट्रियता की भावना से प्रभावित था स्वतंत्रता - प्राप्ति के लिए यूनान में भी इटली के समान गुप्त क्रांतिकारी समितियाँ गठित की गई ऐसी समितियों में प्रमुख थी ओडेसा में स्थापित हिटोरिया फिल्के नामक संस्था इसका उद्देश्य बाल्कन क्षेत्र से तुर्की का प्रभाव समाप्त करना था इस संस्था की सदस्य - संख्या हजारो में थी इसका प्रभाव यूनान के बाहर भी था। 

विद्रोह का आरंभ एवं स्वरूप :-

1821 में एलेक्जेंडर यिपसिलांति के नेतृत्व में मोलडेविया में विद्रोह हुआ इससे भयभीत होकर मेटरनिक ने रूस के सम्राट जार एलेक्जेंडर पर यूनानी विद्रोह को दबाने के लिए दबाब डाला। यधपि जार यूनानियों का समर्थन था परंतु उस पर मेटरनिक का प्रभाव था इसलिए रूस ने विद्रोहियों की सहायता नहीं की अतः तुर्की के सुल्तान ने सेना की सहायता से विद्रोह को कुचल दिया यिपसिलांति को गिरफ्तार कर जेल में बंद कर दिया गया विद्रोह की विफलता से यूनानी हताश नहीं हुए उन लोगो ने अपना संघर्ष जारी रखा। मोरिया द्वीप में दूसरा व्यापक विद्रोह हुआ विद्रोहियों को यूरोप के अन्य देशो से सहायता मिलने लगी कवियों और कलाकारों ने यूनान को यूरोपीय सभ्यता का पालना बताकर राष्टवादियो के लिए समर्थन जुटाया अनेक देशो से स्वयंसेवक यूनानी ईसाइयो की सहायता के लिए यूनान पहुंचे। विख्यात अगरेज कवि लॉड बायरन ने यूनानियों की धन से सहायता की तथा स्वयं भी युद्ध में भाग लेने पहुँचे वही 1824 में उनकी मृत्यु हो गई। तुर्की के सुल्तान महमूद द्वितीय ने मोरिया के विद्रोह को धार्मिक स्वरूप प्रदान किया। उसने इस्लाम की रक्षा के लिए मुसलमानो का आहन किया। सेना की सहायता से उसने यूनानी केंद्रों पर आक्रमण किया।1822 में लगभग बीस हजार यूनानी मौत के घाट उतार दिए गए सुल्तान स्वयं विद्रोह को दबाने में कठिनाई महसूस कर रहा था अतः उसने मिस्र के शासक पाशा महमत अली से सहायता की माँग की। उसने सेना और धन से सुलतान की सहायता की। यूनानियों का विद्रोह दबा दिया गया यूनानियों पर हुए अत्याचारों से यूरोप में आंदोलनकारियों के प्रति सहानुभूति की भावना जगी। उन्हें धन तथा हथियार भेजे गए। 1826 में ब्रिटेन और रूस यूनानी तुर्की संघर्ष में हस्तक्षेप करने को तैयार हो गए। नए जार निकोलस ने खुलकर यूनानियों का साथ देने का निर्णय लिया फ्रांसीसी सम्राट चाल्स दशम भी यूनान का समर्थन बन गए। 1827 के लंदन सम्मेलन में इंगलैंड , फ्राँस तथा रूस ने तुर्की के विरुद्ध संयुक्त करवाई करने का निशचय किया। तुर्की से राजनितिक संबंध तोड़कर रूस ने तुर्की के विरुद्ध युद्ध आरंभ कर दिया नावारिनो की खाड़ी में संयुक्त सेना इकठी हुई तुर्की की सहायता सिर्फ मिस्र ने की। रुसी सेना ने तुर्की को पराजित कर दिया बाध्य होकर तुर्की को रूस के साथ 1829 में एड्रियानोपुल की संधि करनी पड़ी। संधि के द्वारा सुलतान ने यूनान में वंशानुगत राजशाही और यूनान के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया यूनानी राष्ट्र्वादी इससे संतुष्ट नहीं हुए उन लोगो ने संधि को ठुकरा दिया। इंगलैंड तथा फ्राँस भी यूनान पर रूसी प्रभाव की स्थापना के विरोधी थे अतः 1832 में कुस्तनतुनिया की संधि द्वारा स्वतंत्र यूनान राष्ट्र की स्थापना हुई बवेरिया के राजकुमार ऑटो को यूनान का शासक बनाया गया। यूनान तुर्की शासन से मुक्त हो गया। रुसी प्रभाव भी यूनान पर से समाप्त हो गया। 

यूनानी स्वतंत्रता संग्राम के परिणाम :-

यूनानियों ने लंबे और कठिन संघर्ष के बाद ऑटोमन साम्राज्य के अत्याचारी शासन से मुक्ति पाई। यूनान के स्वतंत्र और संग्रभु राष्ट्र का उदय हुआ। यधपि इस प्रक्रिया में गणतंत्र की स्थापना नहीं हो सकी , परंतु एक स्वतंत्र राष्ट्र के उदय ने मेटरनिक की प्रतिक्रियावादी नीति को गहरी ठेस लगाई। प्रतिक्रियावादी के विरुद्ध राष्ट्रवाद की विजय हुई। यूनानियों की विजय से 1830 के क्रांतिकारियों को प्रेरणा मिली। बाल्कन क्षेत्र के अन्य ईसाई राज्यों में भी राष्ट्रवादी आंदोलन आरंभ करने की चाह बढ़ी। 


सविनय अवज्ञा आंदोलन का महत्त्व एवं परिमाण को लिखें ?

 सविनय अवज्ञा आंदोलन का महत्त्व एवं परिमाण 

सविनय अवज्ञा आंदोलन महात्मा गाँधी द्वारा चलाया जानेवाला दूसरा व्यापक जनआंदोलन था। इसने स्वतंत्रता आंदोलन को एक कदम बढ़ा दिया , आशा की किरणे नजर आने लगी। इस आंदोलन के अनेक महत्वपूर्ण परिणाम हुए 1. सविनय अवज्ञा आंदोलन ने राष्ट्रीय आंदोलन के सामाजिक आधार का विस्तार किया। आंदोलन में विभिन्न सामाजिक वर्गो संपत्र और गरीब किसानो , पूँजीपतियो , श्रमिकों ,छात्रों , बुद्धिजीवियों ,मध्यम वर्गो तथा सामान्य जनता ने भी गाँधीजी से प्रभावित होकर भाग लिया। 2. समाज के विभिन्न वर्गो का राजनीतिकरण हुआ। उनमें राजनितिक एवं राष्ट्रीय चेतना का विकाश हुआ। 3. पहली बार महिलाएँ घरो से निकलकर इस आंदोलन में शामिल हुई। बहिष्कार आंदोलन को सफल बनाने में उनका महत्वपूर्ण योगदान था इस आंदोलन के माध्यम से महिलाओ का सार्वजनिक जीवन में प्रवेश हुआ। 4 सविनय अवज्ञा आंदोलन ने ब्रिटिश आर्थिक हितो को गहरी क्षति पहुँचाई। आर्थिक बहिष्कार की नीति से विदेशी वस्तुओ के आयात में कमी आई जिसने ब्रिटिश आर्थिक हितो पर प्रतिकूल प्रभाव डाला। 5. सविनय अवज्ञा आंदोलन ने राष्ट्रियता की भावना की ओर अधिक आगे बढ़ाया। 6. इस आंदोलन में पहली बार संगठन   के नए स्वरूप सामने आए प्रभात फेरी द्वारा लोगो में जागृत लाई गई वानर सेना और मंजरी सेना ने सविनय अवज्ञा आंदोलन को प्रभावशाली बनाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई राष्टीयतापूर्ण लेखो और निबंधों का पत्र - पत्रिकाओं में प्रकाशन कर राष्टवादी चेतना चलाई गई तथा औपनिवेशिक शासन के विरुद्ध लोगो को संगठित किया गया। 7.सरकार समझ गई की काँग्रेस ही भारतीय जनता की प्रतिनिधि संस्था है इसकी सहमति के बिना सरकार कोई निर्णायक कदम नहीं उठा सकती है इसलिए सरकार ने समानता के आधार पर काँग्रेस से वार्ता की। 8. सविनय अवज्ञा आंदोलन के दौरान सरकारी नीतियों का प्रबल विरोध देखकर अंगरेजी सरकार को संवैधानिक सुधारों की घोषणा करनी पड़ी। 1935 का भारत सरकार अधिनियम पारित कर प्रांतीय स्वायत्तता की व्यवस्था की गई फलतः अनेक प्रांतो में काँग्रेसी सरकारों का गठन हुआ प्रांतीय सरकारों ने सामान्य जनता की समस्याओ को सुलझाने का प्रयास किया। उपयुक्त विवेचना से स्पष्ट हो जाता है कि प्रथम विश्वयुद्ध के बाद ही राष्ट्रीय स्वतंत्रता आंदोलन में तेज गति आई। असहयोग एवं सविनय अवज्ञा आंदोलनों ने सामान्य जन को भी स्वतंत्रता आंदोलन में भाग लेने का अवसर दिया। शिक्षित मध्यम वर्ग के साथ - साथ किसानो श्रमिकों और महिलाओ में भी राजनितिक चेतना का विकाश हुआ।  

शहरीकरण से आप क्या समझते है

शहरीकरण  

शहरीकरण उस प्रक्रिया को कहते है जिसके अंतर्गत गॉंव क्रमशः छोटे कस्बे , शहर , नगर और महानगर में तबदील हो जाते है शहरों के उदय और विकाश में अनेक कारणों का योगदान रहा है इनमे आर्थिक राजनितिक और धर्मिक कारण प्रमुख है गॉंव और शहर की संरचना में मूलभूत अंतर होता है ग्रामीण लोगो की आजीविका कृषि , पशुपालन एवं घरेलू उधोग धंधो पर आश्रित रहती है गॉवो की जनसंख्या भी कम होती है आवास कच्चे और बेतरतीब ढंग से बने होते है इसके विपरीत शहरी अर्थव्यवस्था गैर - कृषि व्यवसायों पर आधारित होती है नगर में विभिन्न व्यवसायों - व्यापार , उधोग , नौकरी में लगे लोग रहते है शहरों में जनसंख्या का घनत्व गाँवो से अधिक होता है मकान साफ - सुथरे सुनियोजित ढंग से बने होते है सड़को और गलियों में रोशनी की व्यवस्था रहती है शहरों में बड़े - बड़े आलीशान मकान होते है शहर सामाजिक , राजनितिक , प्रशासनिक , सैनिक और धार्मिक गतिविधियों के केन्द्र होते है स्पष्ट रूप से गॉंव और शहर आंतरिक रूप से एक दूसरे से अलग होते है। शहरीकरण की प्रक्रिया में लंबा समय लगा है यधपि प्राचीन और मध्यकाल में भी अनेक शहर थे तथापि आधुनिक नगरों से उनका स्वरूप भिन्न था औधोगिकीकरण के बाद ही आधुनिक नगरों का विकाश हुआ। औधोगिकीकरण के कारण बड़ी संख्या में लोग रोजगार के अवसर की तलाश में कृषि और पशुपालन तथा कुटीर उधोगो को छोड़कर कल - कारखानों की ओर आकर्षित हुए आधुनिक काल के पूर्व भी बेहतर रोजगार की तलाश में लोग गाँवो से बाहर निकलते थे वे अपने कृषि उत्पादों और शिल्प की वस्तुओ को बेचने के लिए भी गॉंव से बाहर किसी एक केंद्र पर एकत्रित होते थे ये केंद्र हाट अथवा गंज के रूप में विकशित हुए गंज के इर्द - गिर्द कस्बा अथवा छोटे शहर का विकाश हुआ शहरीकरण की प्रक्रिया में आगे चलकर कस्बा से शहर , शहर से नगर एवं नगर से महानगर बने। ग्रामीण परिवेश से भिन्न ये स्थान नागरिक और अन्य आर्थिक गतिविधियों के केंद्र बन गए। सामंत और राजा उनके कर्मचारी उनकी सेना भी वहाँ रहने लगी उनके लिए भव्य भवन बनाए गए नगरों की सुरक्षा के लिए दुर्ग एवं घेराबंदी की व्यवस्था की गई नगर शिक्षा के भी केंद्र बन गए जैसे तलशिक्षा , नालंदा , विक्रमशिला इत्यादि। धार्मिक मान्यताओ के अनुकूल धार्मिक भवन भी बनवाए गए जहाँ लोग बड़ी संख्या में तीर्थयात्रा करने आते थे जैसे गया , वाराणसी , मथुरा इत्यादि इस प्रक्रिया द्वारा गॉंव शहरों में बदलने लगे। प्राचीनकाल से मध्यकाल तक शहरीकरण की सामान्य प्रक्रिया यही रही। शहरों की स्थापना नदियों के किनारे अथवा व्यापारिक मार्गो के निकट की गई इससे आर्थिक क्रियाकलापों में सुविधा मिली तथा नगरों की समृद्वि बढ़ी। आधुनिक काल में कल - कारखानों की स्थापना और राजनितिक परिवर्तनों से नगरों का स्वरूप बदला। ये आधुनिक नगर बन गए। 

आधुनिक नगर :-

आधुनिक नगरों के उदय में तीन तत्वों का महत्वपूर्ण योगदान रहा है 1. औधोगिक पूँजीवाद का उदय 2. उपनिवेशवाद का विकाश तथा 3. लोकतांत्रिक आदर्शो का विकाश। इन कारणों से आधुनिक नगर आर्थिक और राजनितिक गतिविधियों के केंद्र बन गए नगर आधुनिकता के प्रतीक बन गए कृषि प्रधान अर्थव्यवस्था का स्थान मुद्रा प्रधान अर्थव्यवस्था ने ले लिया। यह अर्थव्यवस्था उधमि प्रवृति से प्रभावित एवं प्रतियोगी था शहरीकरण ने आर्थिक व्यवस्था के साथ - साथ सामाजिक एवं राजनितिक व्यवस्था पर भी गहरा प्रभाव डाला। शहर परस्पर विरोधी छविवाले बन गए। 

इंगलैंड में औधोगिक क्रांति के कारण को लिखे ?

इंगलैंड में औधोगिक क्रांति के कारण   

औधोगिक क्रांति सबसे पहले इंगलैंड में हुई ऐसा होने के कुछ विशिष्ट कारण थे ये कारण निम्नलिखित है। 

इंगलैंड की भौगोलिक स्थिति :-


इंगलैंड की भौगोलिक स्थिति उधोग - धंधो के विकाश के अनुकूल थी कटे हुए समुद्री किनारो के कारण उसके पास अच्छे बंदरगाह थे अतः समुद्री मार्ग से कच्चा माल आयात करने एंव निर्मित वस्तुओ के निर्यात जो औधोगिकीकरण के आवश्यक तत्त्व है की सुविधा इंगलैंड में थी इंगलैंड बाहरी आक्रमणों से भी सुरक्षित था। 

खनिज पदार्थो की उपलब्धता :-

इंगलैंड में प्राकृतिक साधन प्रचुर मात्रा में उपलब्ध थे इंगलैंड के उत्तरी और पशिचमी भाग में लोहा और कोयला की खाने थी इनसे औधोगिक विकाश के लिए खनिज आसानी से उपलब्ध हो गए। 

कृषि क्रांति :-

अठारहवीं शताब्दी में इंगलैंड में कृषि क्रांति हुई। इससे कृषि और पशुपालन में व्यापक परिवर्तन आया। इंगलैंड में सरकार पर भूमिपतियों का प्रभाव था अपनी आमदनी बढ़ाने के लिए इन लोगो ने कृषि और पशुपालन के नए तरीके का इजाद किया टाउनशेंड ने फसलों को बदल - बदलकर चक्रानुसार खेती करने का उपाय सुझाया। खाद का उपयोग कर तथा परती भूमि को जोत में लाकर कृषि का विस्तार किया गया तथा उत्पादन बढ़ाया गया। इसी प्रकार पशुओं के नस्ल में भी सुधार किया गया। वैज्ञानिक और उन्नत कृषि के लिए खेत के बड़े टुकड़ो तथा उनकी घेराबंदी की आवश्यकता पड़ी। अतः भूमिपति वर्ग ने सरकार पर दबाव डालकर बाराबंदी कानून पारित करवाया। इससे कृषि और पशुपालन का विकाश हुआ। अतिरिक्त कृषि उत्पादन से औधोगिक क्रांति में सहायता मिली। 

मजदूरो की उपलब्धता :-

बाड़ाबंदी कानून से जहाँ कृषि उत्पादन में वृद्धि हुई एवं भूमिपतिओ को लाभ हुआ वही छोटे किसान अपनी भूमि से बेदखल हो गए उनके सामने आजीविका का प्रश्न उठ खड़ा हुआ ये किसान औधोगिक केंद्रों की ओर जाने और कारखानों में काम करने को विवश हो गए इसलिए इंगलैंड में कल - कारखानों के लिए सस्ते मजदूर सुलभ हो गए। 

कुशल कारीगर :-

इंगलैंड में सस्ते मजदूरों के अतिरिक्त पर्याप्त संख्या में कुशल कारीगर भी उपलब्ध थे युद्ध के दौरान यूरोपीय देशो से अनेक कारीगर आकर इंगलैंड में बस गए इंगलैंड के मजदूर उनके संपर्क में आए तथा अपनी कार्यकुशलता बढ़ा ली। इससे औधोगिकीकरण में सहायता मिली। 

पर्याप्त पूँजी की उपलब्धता :-

उधोगों और मशीनों में धन लगाने के लिए इंगलैंड के पूँजीपतियों के पास समुचित पूँजी उपलब्ध थी यह पूँजी भूमिपतियों और व्यापारियों के पास थी इन दोनों वर्गो ने अधिक धन कमाने के लिए अपनी पूँजी उधोगों में लगाई इससे पूँजी का अभाव नहीं हुआ तथा औधोगिक विकाश की प्रक्रिया बढ़ी। 

प्रगतिशील व्यापारी वर्ग :-

इंगलैंड में व्यापारी वर्ग प्रगतिशील था वह व्यापार का निरंतर विकाश करता रहता था व्यापार के नए स्रोतो की खोज निरंतर की जाती थी अपने उपनिवेशों अमेरिका , अफ्रीका तथा भारत से व्यापारिक संपर्क स्थापित होने से इंगलैंड को कच्चे माल का बड़ा भंडार मिला इससे नए स्थापित उधोगों को कच्चा माल सुगमता से उपलब्ध हो गया। साथ ही कारखानों में तैयार माल के लिए बड़ा बाजार भी मिल गया। ऑगरेजी सरकार भी व्यापार के विकाश के लिए व्यापारियों को संरक्षण और छूट देती थी इससे उत्साहित होकर व्यापारियों ने भी उधोगों में अपनी पूँजी लगानी आरंभ कर दी। ईस्ट इंडिया कंपनी की स्थापना ने पूर्वी देशो विशेषतः भारत के साथ व्यापारिक संबंध बढ़ाया। 

संयुक्त व्यापारिक कंपनियों की स्थापना :- 

औधोगिकीकरण में इंगलैंड में उधोग व्यक्तिगत स्तर पर आरंभ किए गए इससे इंगलैंड का औधोगिक विकाश पूरी तरह नहीं हो सका बाद में संयुक्त व्यापारिक कंपनियों की स्थापना की गई इससे औधोगिक विकाश की गति तीव्र हुई संयुक्त व्यापारिक कंपनियों के कारण उधोगो की स्थापना - संबंधी कठिनाइयाँ दूर हो गई नए उधोग खोलने को प्रोत्साहन मिला। संयुक्त व्यापारिक कंपनियों को बेंको से भी सहायता मिली इससे औधोगिकीकरण बढ़ा। 

अनुकूल राजनितिक स्थिति :-

18वी शताब्दी तक इंगलैंड में राजनितिक चेतना का विकाश हो चुका था वह एक राष्ट्र के रूप में संगठित था इसके विपरीत फ्रांस में राजनितिक अस्थिरता थी जर्मनी का एकीकरण नहीं हुआ था वह छोटे - छोटे राज्यों में विभक्त था इंगलैंड में परिस्थिति भिन्न थी यधपि इंगलैंड यूरोपीय युद्धों में भाग लेता था परंतु वे युद्ध इंगलैंड की धरती पर नहीं लड़े जाते थे इससे इंगलैंड के औधोगिक विकाश में बाधा नहीं हुआ। 

राजकीय संरक्षण :-

इंगलैंड में औधोगिकीकरण को सरकारी नीतियों से बढ़ावा मिला। सरकार ने उधोगो और व्यवसायों को संरक्षण एवं सहायता दिया। सरकार ने मुक्त व्यापार और अहस्तक्षेपण की नीति अपनाई। इससे व्यापारी धन अर्जित कर अपनी पूँजी उधोग में लगाने लगे। 

जनसंख्या में वृद्धि :-

इंगलैंड में जनसंख्या में वृद्धि भी औधोगिक क्रांति का कारण बनी। राज्य द्वारा चिकित्सा एवं गरीबो निसहायो की सहायता मिली। इससे लोग बीमारी , गरीबी , भुखमरी से बच गए। फलतः मृत्यु - दर में कमी हुई तथा जनसंख्या में वृद्धि हुई। इससे उधोग धंधो के विकाश में सहायता मिली। 

वैज्ञानिक का योगदान :-

औधोगिक क्रांति लाने में इंगलैंड के वैज्ञानिक का भी महत्वपूर्ण योगदान था इन लोगो ने नए - नए आविष्कार कर नई मशीने बनाई जिनसे वस्त्र उधोग , परिवहन , संचार - व्यवस्था एवं खनन उधोगों में प्रगति हुई। उधोग धंधो में नई मशीनों का व्यवहार आरंभ हुआ। इससे कल - कारखाने स्थापित हुए और कारख़ानेदारी की प्रथा का विकाश हुआ कारख़ानेदारी प्रथा औधोगिकीकरण की प्रमुख विशेषता बन गई। 

उपनिवेशवाद :-

उपनिवेशवाद ने भी औधोगिकीकरण में सहायता पहुंचाई। भारत जैसे उपनिवेशों से ब्रिटेन को कच्चा माल आसानी से उपलब्ध हो गया। इससे इंगलैंड के उधोगों , विशेषतः वस्त्र उधोग में तेजी आई। उत्पादित वस्तुओ के लिए भारत में बाजार भी मिल गए। इससे औधोगिकीकरण को बढ़ावा मिला। 

परिवहन की सुवधा :-

कारखानों में उत्पादित वस्तुओ तथा कारखानों तक कच्चा माल पहुचाने के लिए आवागमन के साधनो का विकाश किया गया। सड़को एवं जहाजरानी का विकाश हुआ। आगे चलकर रेलवे का भी विकाश हुआ इससे औधोगिकीकरण में सुविधा हुई। 


जालियाँवाला बाग हत्याकांड क्यों हुआ ? इसने राष्ट्रीय आंदोलन को कैसे बढ़ावा दिया ?

 जालियाँवाला बाग हत्याकांड 

फौजी शासन लागू कर जनरल डायर ने पंजाब में आतंक का राज्य स्थापित कर दिया। जनता इससे हताश नहीं हुई और सरकार का विरोध जारी रखा। 13 अप्रैल 1919 को वार्षिक बैसाखी मेले के अवसर पर जालियाँवाला बाग में एक विराट - सभा का आयोजन किया गया। इसमें बड़ी संख्या में सरकार की दमनकारी नीति का विरोध करनेवाले भी थे जालियाँवाला बाग एक बाग न होकर वस्तुतः एक खुला मैदान था जिसके चारो और मकान बने हुए थे बीच में सिर्फ एक कुआँ और कुछ पेड़ थे बाग में प्रवेश करने का सिर्फ एक संकीर्ण मार्ग था अमृतसर शहर से बाहर होने के कारण मैदान में एकत्रित लोगो को पता नहीं था की शहर में फौजी कानून लगाया जा जुका है। जिस समय सभा चल रही थी उसी वक्त संध्याकाल में जनरल डायर सैनिको और बख्तरबंद गाड़ियों के साथ वहाँ पहुँचा। प्रवेश द्वार के दोनों ओर सैनिको को खड़ा कर उसने बाहर निकलने का मार्ग बंद करवा दिया गया। इसके बाद बिना किसी चेतावनी के उसने भीड़ पर अंधाधुन गोलियाँ चलवा दी। अनुमानतः 10 मिनट के अंदर 1600 च्रक गोलियाँ चलाई गई गोली चलते ही भीड़ में भगदड़ मच गई सैकड़ो व्यक्ति गोली से मारे गए। अनेक भगदड़ में कुचलकर मर गए। कुछ लोगों ने कुएँ में कूदकर जान दे दी पूरा मैदान मृतकों और घायलों से पट गया तथा ह्रदयविदारक दृश्य उत्पन्न हो गया। डायर ने घायलों की चिकित्सा की कोई व्यवस्था नहीं की उन्हें तड़पता छोड़ वह चला गया। बाद में उसने कहा की वह लोगो में दहशत और विस्मय का भाव पैदा करके एक नैतिक प्रभाव उत्पन्न करना चाहता था अमृतसर की घटना ने पूरे भारत को आक्रोशित कर दिया। जगह जगह विरोध प्रदर्शन और हड़ताल हुए। पुलिस से हिंसक झड़पे भी हुई। सरकारी इमारतों पर भीड़ ने हमले किए। सरकार ने निर्ममता से विरोध को कुचलने का निर्णय लिया जालियाँवाला बाग की घटना की खबर के प्रकाशन पर रोक लगा दी गई। पंजाब से बाहर जाने और अंदर प्रवेश करने पर रोक लगा दी गई जनता पर अमानुषिक अत्याचार किए गए। सत्याग्रहियों को सार्वजनिक तौर पर कोड़े लगाए गए उन्हें सड़क पर घिसटकर चलने और नाक रगड़ने को विवश किया गया। विधार्थियो और अध्यापकों पर अत्याचार किए गए। गुजराँवाला , पंजाब पर बम बरसाए गए। जालियाँवाला बाग की घटना की तीखी प्रतिक्रिया पंजाब के बाहर भी हुई। जालियाँवाला बाग पर महात्मा गाँधी की दूसरी प्रतिक्रिया हुई वह अहिंसक सत्याग्रह द्वारा रॉलेट सत्याग्रह चलाना चाहते थे परंतु हिंसक घटनाओ से वह विक्षुब्ध हो गए उन्होंने कैंसर - ए - हिन्द की उपाधि त्याग दी। 18 अप्रैल 1919 को उन्होंने अपना सत्याग्रह वापस ले लिया। गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर ने घटना के विरोध अपना सर का ख़िताब वापस लौटने की घोषणा की। काँग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य शंकरन नायर ने इस्तीफा दे दिया। डायर को वापस बुलाने की माँग की जाने लगी। काँग्रेस ने जालियाँवाला बाग हत्याकांड की जाँच के लिए एक जाँच समिति नियुक्त की समिति के डायर को दोषी ठहराकर उसे दंडित करने की माँग की सरकार ने भी घटना की जाँच के लिए हंटर समिति नियुक्त की। इस समिति ने डायर के कार्यों की निंदा की , परंतु वह पंजाब के लेफिटनेंट गवर्नर के पद पर बना रहा। अनेक अगरेजो ने डायर की प्रशंसा कर उसे पुरस्कृत किया। इससे भारतीयों का रोष और अधिक बढ़ा। महात्मा गाँधी ने कहा प्लासी ने ब्रिटिश - साम्राज्य की नीव रखी अमृतसर ने उसे हिला दिया। स्वाधीनता के बाद जालियाँवाला बाग स्मृति स्मारक का निर्माण करवाया गया। 

इटली के एकीकरण के विभिन्न चरणों को इंगित करें

इटली का एकीकरण  

19वी शताब्दी के यूरोपीय इतिहास की दो महत्वपूर्ण घटनाएँ थी इटली और जर्मनी का एकीकरण इनके परिणामस्वरूप यूरोप के मानचित्र पर दो नए राष्टों का उदय। हुआ इटली और जर्मनी। प्रथम विश्वयुद्ध के पूर्व एवं बाद के वर्षो में इन राष्टों ने यूरोपीय राजनीती में महत्वपूर्ण भूमिका निबाही।

1815 के पूर्व इटली :-

इटली जिसकी राजधानी रोम थी का इतिहास काफी पुराना है रोमन सभ्यता और संस्कृति का विकाश यही हुआ। यह राजनितिक गतिविधियों के अतिरिक्त सामाजिक - धार्मिक क्रियाकलापों का भी केन्द्र था कैथोलिक ईसाई धर्मावलंबियो के प्रधान पोप की शक्ति का केंद्र भी रोम ही था कालांतर में यह अपना राजनितिक महत्त्व खोने लगा। 1815 तक मेटरनिक के शब्दों में यह भौगोलिक अभिव्यक्ति मात्र बनकर रह गया। 1815 में इटली चार राजनितिक - भौगोलिक क्षेत्रों में विभक्त था 1. उत्तरी इटली जहाँ राजतंत्र का प्रभाव था 2. औस्ट्रिया के प्रभाव वाला क्षेत्र 3. पोप के अधीन मध्य इटली 4. दक्षिणी इटली जिसमे नेपल्स तथा सिसली के राज्य सम्मिलित थे समस्त इटली विभिन्न प्रजातियों भाषाओ एंव वर्गो में विभक्त था इन्हे एकीकृत करना आसान नहीं था परन्तु इटली के राष्टवादियों - मेजिनी , कावूर और गेरिबाल्टी के प्रयासों से 1870 में इटली का एकीकरण संभव हो सका। इटली के एकीकरण का मसीहा मेजिनी , तलवार , गैरीबाल्डी को और राजनीतिज्ञ कावूर को कहा जाता है इटली के एकीकरण की प्रक्रिया का आरंभ नेपोलियन बोनापार्ट से माना जाता है उसे इटली में राष्टवाद का जन्मदाता कहा जाता है उसने इटली में राष्टवाद तथा लोकतंत्रवाद की भावनाओ को जागृत किया। पुनर्जागरण और बुद्विवाद की भावना का विकाश भी नेपोलियन के आक्रमणों से हुआ। उसने इटली में ट्रांसपेदडेन गणराज्य , लीगुलियन और सीसेलपाइन गणराज्य की स्थापना कर इटली के भावी एकीकरण की नीव रख दी। 

1815 के बाद इटली :-

1815 में नेपोलियन की पराजय के बाद वियना सम्मेलन ने इटली में महत्वपूर्ण राजनितिक परिवर्तन किए। जेनोआ तथा सेवॉय का भाग पीडमौंट को दे दिया गया सार्डिनिया का राज्य भी पीडमौंट में मिला दिया गया लोमबाडी और वेनेशिया पर औस्ट्रिलिया का आधिपत्य हो गया। पोप के राज्य और उसकी शक्ति की पुनस्थापना की गई नेपल्स में बुर्बो राजवंश का शासन स्थापित किया गया सिसली का राज्य भी नेपल्स को दे दिया गया इस प्रकार इटली को विभिन्न खंडो में विभक्त कर दिया गया। 

इटली के एकीकरण में बाधाए :-

इटली की भौगोलिक स्थिति इसके एकीकरण में बड़ी बाधा थी मध्य इटली में पोप का राज्य होने से उत्तरी और दक्षिणी इटली को एक सूत्र में बाधना कठिन था पोप की चुनौती देने से यूरोप के कैथोलिक राज्यों के हस्तक्षेप का भय था इसके अतिरिक्त पोप यह चाहता था की इटली का धार्मिक एकीकरण उसके नेतृत्व में हो राजनितिक नहीं। ऑस्ट्रिलिया और फ्राँस भी एकीकरण में बाधक थे आंतरिक रूप से कुलीन वर्ग का विरोध भी एक बड़ी बाधा थी क्योंकि यह वर्ग सत्ता और धर्म का संरक्षक था परंतु राष्ट्रवाद की भावना के विकाश ने इटली के एकीकरण की बाधाए दूर कर दी। 

एकीकरण में सहायक तत्त्व :-

राष्ट्रवादी भावना के विकाश और एकीकरण में इटली की सांस्कृतिक क्रांति की महत्वपूर्ण भूमिका थी साहित्यकारों , इतिहासकारो , लेखकों ने अपने लेखो द्वारा प्राचीन ऐतिहासिक गौरव को उजागर किया जिसका जनमासक पर गहरा प्रभाव पड़ा। मेकियावेली और दाते को इटलीवासियों ने स्वाधीनता के अग्रदूत के रूप में देखा।

 

नव गुएल्फ आंदोलन :-

नव गुएल्फ आंदोलन के माध्यम से जियोबर्टी ने इटलीवालो को एक प्रजाति , खून , भाषा , धर्म का बताया। उसने पोप के नेतृत्व में इतावली राज्यों के संघ की कल्पना की जबकि बलबो नामक एक अन्य लेखक ने चालर्स ऐलबर्ट को संघ के नेता के रूप में प्रस्तुत किया इटली के विभिन्न नगरों में आयोजित वैज्ञानिक कांग्रेस के सम्मेलनों में इटली के भौगोलिक और सांस्कृतिक एकीकरण पर बल दिया गया इटली के गुप्त क्रांतिकारी संघठनो ने भी स्वाधीनता और राष्ट्रवाद की भावना जागृत की। ऐसी संस्थाओं में सबसे प्रमुख कार्बोनारी था जिसकी स्थापना 1810 में की गई थी इस संस्था का प्रमुख उद्देश्य छापामार युद्ध का सहारा लेकर राजतंत्र को समाप्त कर गणतंत्र की स्थापना करना था स्वयं मेजिनी भी कार्बोनरी का सदस्य था नेपोलियन के समय में और उसके अनेक वर्षो बाद तक यह संगठन इटली में सक्रिय रहा। 

एकीकरण के प्रमुख नायक :-

इटली के एकीकरण के तीन प्रमुख नायक थे 

  1. मेजिनी 
  2. कावूर 
  3. गैरीबाल्डी 


 

विधुत क्षेत्र रेखाएँ क्या है?

विधुत क्षेत्र रेखाएँ  

विधुत क्षेत्र में यदि कोई सूक्ष्म धन आवेश चलने के लिए स्वतंत्र हो तो जिस पथ से होकर वह छल चल सकता है उसी पथ को विधुत क्षेत्र रेखा कहते है।

  • इसे विधुत बल रेखाएँ भी कहा जाता है 
  • यह एक ऐसा काल्पनिक वक्र रेखा है जिनसे होकर कोई अकेला धन आवेश चल सकता है 
विधुत क्षेत्र रेखा का गुण :-
  • विधुत क्षेत्र रेखाएँ धन आवेश से उत्पन्न होती है और ऋणावेश पर खत्म होती है 
  • विधुत क्षेत्र रेखा के किसी बिंदु पर खिची गई स्पर्श रेखा उस बिंदु पर विधुत क्षेत्र की दिशा बताती है 
  • किसी स्थान पर क्षेत्र रेखाओ का दूर - दूर होना विधुत क्षेत्र का कमजोर होना प्रदर्शित करता है तथा क्षेत्र रेखाओ का पास - पास होना विधुत क्षेत्र का प्रबल होना प्रदर्शित करता है 
  • विधुत क्षेत्र रेखाएँ एक दूसरे को प्रप्रतिच्छेद नही करती है 
  • एक समान विधुत क्षेत्र में खिची गई क्षेत्र रेखाएँ परस्पर समांतर और एक दूसरे से बराबर दूरी पर होती है 
  • आवेशित चालक से निकलने वाली क्षेत्र रेखाएँ चालक के तल के लंमबत होती है 
  • विधुत क्षेत्र रेखाएँ बंद लुप नही बनाती है 
दो विधुत क्षेत्र रेखाएँ एक दूसरे को नही काट सकती है क्यों 

दो विधुत क्षेत्र रेखाएँ एक दूसरे को नही काट सकती है क्योकि किसी भी बिंदु पर विधुत क्षेत्र की केवल एक ही दिशा हो सकती है अतः प्रत्येक बिंदु से केवल एक ही क्षेत्र रेखा गुजर सकती है यही कारण है की विधुत क्षेत्र रेखाएँ एक दूसरे को नही काट सकती है यदि दो विधुत क्षेत्र रेखाएँ एक दूसरे को काटती तो कटान बिंदु पर दो स्पर्श रेखाएँ खिची जा सकती है जो उस बिंदु पर विधुत क्षेत्र की दो दिशाएँ प्रदर्शित करेगी परन्तु यह सभव नही है। 

एक धन आवेशित बिंदु आवेश से उत्पन्न विधुत क्षेत्र रेखाएँ :-

इस बिंदु आवेश के निकट रखने पर वह प्रतिकर्षण बल का अनुभव करेगा अतः यह अनंत तक सीधी रेखा में त्रिज्यत्तः चला जाएगा इसलिए एकल धनआवेश से उत्पन्न विधुत क्षेत्र रेखाए धन आवेश से प्रारंभ होकर सरल रेखाओ में अनंत तक चली जाती है। 

ऋणावेशित बिंदु आवेश से उत्पन्न विधुत क्षेत्र रेखाएँ :-   

एकल ऋणावेश के विधुत क्षेत्र में किसी धनावेश को रखने पर वह आकर्षण बल का अनुभव करेगा तथा अनंत से चलकर ऋणावेश तक आ जाएगा अतः एकल ऋणावेश के कारण उत्पन्न विधुत क्षेत्र रेखाएँ अनंत से चलकर सीधी रेखा में त्रिज्यतः ऋणावेश तक आ जाती है।

विधुत द्विध्रुब अर्थात अल्प दूरी पर रखे दो बराबर परिमाण और विपरीत प्रकृति के बिंदु आवेशों से उत्पन्न विधुत क्षेत्र रेखाएँ :-

ये क्षेत्र रेखाएँ धनावेश से प्रारंभ होकर ऋणावेश पर समाप्त हो जाती है तथा ये विजातीय आवेशों के बीच परस्पर आकर्षण व्यक्त करता है। 


दो बराबर ऋणावेश द्वारा उत्पन्न विधुत क्षेत्र रेखाएँ :-

जब हवा में एक दूसरे से कुछ दूरी पर स्थित दो बराबर ऋणावेश के निकाय के चारो ओर की क्षेत्र रेखाएँ परस्पर प्रतिकर्षण व्यक्त करती है इससे उत्पन्न विधुत क्षेत्र रेखाएँ निम्न प्रकार से होती है। 


एक समान विधुत क्षेत्र में उत्पन्न क्षेत्र रेखाएँ :-

एक समान विधुत क्षेत्र में उत्पन्न विधुत क्षेत्र रेखाएँ परस्पर समांतर और एक दूसरे से बराबर दूरी पर होती है।