जालियाँवाला बाग हत्याकांड
फौजी शासन लागू कर जनरल डायर ने पंजाब में आतंक का राज्य स्थापित कर दिया। जनता इससे हताश नहीं हुई और सरकार का विरोध जारी रखा। 13 अप्रैल 1919 को वार्षिक बैसाखी मेले के अवसर पर जालियाँवाला बाग में एक विराट - सभा का आयोजन किया गया। इसमें बड़ी संख्या में सरकार की दमनकारी नीति का विरोध करनेवाले भी थे जालियाँवाला बाग एक बाग न होकर वस्तुतः एक खुला मैदान था जिसके चारो और मकान बने हुए थे बीच में सिर्फ एक कुआँ और कुछ पेड़ थे बाग में प्रवेश करने का सिर्फ एक संकीर्ण मार्ग था अमृतसर शहर से बाहर होने के कारण मैदान में एकत्रित लोगो को पता नहीं था की शहर में फौजी कानून लगाया जा जुका है। जिस समय सभा चल रही थी उसी वक्त संध्याकाल में जनरल डायर सैनिको और बख्तरबंद गाड़ियों के साथ वहाँ पहुँचा। प्रवेश द्वार के दोनों ओर सैनिको को खड़ा कर उसने बाहर निकलने का मार्ग बंद करवा दिया गया। इसके बाद बिना किसी चेतावनी के उसने भीड़ पर अंधाधुन गोलियाँ चलवा दी। अनुमानतः 10 मिनट के अंदर 1600 च्रक गोलियाँ चलाई गई गोली चलते ही भीड़ में भगदड़ मच गई सैकड़ो व्यक्ति गोली से मारे गए। अनेक भगदड़ में कुचलकर मर गए। कुछ लोगों ने कुएँ में कूदकर जान दे दी पूरा मैदान मृतकों और घायलों से पट गया तथा ह्रदयविदारक दृश्य उत्पन्न हो गया। डायर ने घायलों की चिकित्सा की कोई व्यवस्था नहीं की उन्हें तड़पता छोड़ वह चला गया। बाद में उसने कहा की वह लोगो में दहशत और विस्मय का भाव पैदा करके एक नैतिक प्रभाव उत्पन्न करना चाहता था अमृतसर की घटना ने पूरे भारत को आक्रोशित कर दिया। जगह जगह विरोध प्रदर्शन और हड़ताल हुए। पुलिस से हिंसक झड़पे भी हुई। सरकारी इमारतों पर भीड़ ने हमले किए। सरकार ने निर्ममता से विरोध को कुचलने का निर्णय लिया जालियाँवाला बाग की घटना की खबर के प्रकाशन पर रोक लगा दी गई। पंजाब से बाहर जाने और अंदर प्रवेश करने पर रोक लगा दी गई जनता पर अमानुषिक अत्याचार किए गए। सत्याग्रहियों को सार्वजनिक तौर पर कोड़े लगाए गए उन्हें सड़क पर घिसटकर चलने और नाक रगड़ने को विवश किया गया। विधार्थियो और अध्यापकों पर अत्याचार किए गए। गुजराँवाला , पंजाब पर बम बरसाए गए। जालियाँवाला बाग की घटना की तीखी प्रतिक्रिया पंजाब के बाहर भी हुई। जालियाँवाला बाग पर महात्मा गाँधी की दूसरी प्रतिक्रिया हुई वह अहिंसक सत्याग्रह द्वारा रॉलेट सत्याग्रह चलाना चाहते थे परंतु हिंसक घटनाओ से वह विक्षुब्ध हो गए उन्होंने कैंसर - ए - हिन्द की उपाधि त्याग दी। 18 अप्रैल 1919 को उन्होंने अपना सत्याग्रह वापस ले लिया। गुरुदेव रवींद्रनाथ ठाकुर ने घटना के विरोध अपना सर का ख़िताब वापस लौटने की घोषणा की। काँग्रेस के पूर्व अध्यक्ष और वायसराय की कार्यकारिणी के सदस्य शंकरन नायर ने इस्तीफा दे दिया। डायर को वापस बुलाने की माँग की जाने लगी। काँग्रेस ने जालियाँवाला बाग हत्याकांड की जाँच के लिए एक जाँच समिति नियुक्त की समिति के डायर को दोषी ठहराकर उसे दंडित करने की माँग की सरकार ने भी घटना की जाँच के लिए हंटर समिति नियुक्त की। इस समिति ने डायर के कार्यों की निंदा की , परंतु वह पंजाब के लेफिटनेंट गवर्नर के पद पर बना रहा। अनेक अगरेजो ने डायर की प्रशंसा कर उसे पुरस्कृत किया। इससे भारतीयों का रोष और अधिक बढ़ा। महात्मा गाँधी ने कहा प्लासी ने ब्रिटिश - साम्राज्य की नीव रखी अमृतसर ने उसे हिला दिया। स्वाधीनता के बाद जालियाँवाला बाग स्मृति स्मारक का निर्माण करवाया गया।
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