होआ होआ आंदोलन
होआ होआ आंदोलन 1939 में आरंभ हुआ। इसका केंद्र मेकोंग डेल्टा था वहाँ इसका प्रभाव सबसे अधिक था इस आंदोलन की उत्पति उपनिवेशवाद विरोधी विचारो से हुई थी होआ होआ आंदोलन का प्रणेता हुइन्ह फू सो था वह लौकिक शक्तियों और जादू -टोना में विश्वास रखता था वह जनकल्याण - संबंधी कार्य करता था और समाजसुधारक भी था उसने फिजूलखर्ची , शराबखोरी और बाल - कन्याओं की बिक्री की प्रथा का विरोध किया वह गरीबों और निः सहाय लोगों की मदद भी करता था इससे समाज में उसका व्यापक प्रभाव था उसके समर्थनों की संख्या बहुत बड़ी थी हुइन्ह फू सो के बढ़ते प्रभाव को रोकने के लिए सरकार ने कठोर दमनात्मक कारवाई की। उसे पागल घोषित कर जेल में कैद कर दिया गया। फ्रांसीसी व्यंग्यपूर्वक उसे पागल बोंजे कहने लगे। जेल में डालने पर भी उसका प्रभाव कम नही हुआ। यहाँ तक कि जिस डॉक्टर को यह जिम्मेदारी दी गई थी कि वह हुइन्ह फू सो को पागल घोषित करे वह भी बाद में उसका अनुयायी बन गया। आगे चलकर 1941 में फ्रांसीसी डॉक्टरों ने स्वीकार कर लिया कि वह पागल नही है तब सरकार ने उसे वियतनाम से निर्वासित कर लाओस भेज दिया। उसके अनेक समर्थनों को यातना शिविरों में डाल दिया गया। इस प्रकार सरकार ने होआ होआ आंदोलन को दबा दिया। होआ होआ जैसे आंदोलन राष्ट्रवाद की मुख्य धारा से जुड़ गए। राजनितिक दल इनका लाभ उठाने का प्रयास तो करते थे तथापि वे इन आंदोलनों के अनेक रीति - रिवाजो का समर्थन नही करते थे। वियतनाम के कुलीन वर्ग पर कन्फ्यूशियसवाद का गहरा प्रभाव था लेकिन किसानों के बीच बहुतेरी धार्मिक मान्यताएँ प्रचलित थी इनमे बौद्ध धर्म और स्थानीय परंपराओं का समन्वय था वे ईश्वर के अस्तित्त्व में भी विश्वास रखते थे अनेको का विश्वास था कि उन लोगो ने ईश्वरो की आभा के दर्शन किए थे इन समन्वयवादी धर्मो में से कुछ तो औपनिवेशिक शासन के समर्थन थे तो कुछ इसके विरोधी। विरोधी फ्रांसीसी के विरूद्ध चलाए जानेवाली आंदोलन का समर्थन करते थे होआ होआ आंदोलन भी उपनिवेशवाद विरोधी आंदोलन था।
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